संस्कृति विभाग की एक अधिसूचना के अनुसार , रत्नागिरी के देउद में शैलचित्रों का समूह मध्यपाषाण युग (लगभग 20,000-10,000 साल पहले) का है। इसे जियोग्लिफ और पेट्रोग्लिफमहाराष्ट्र सरकार ने रविवार को महाराष्ट्र प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1960 के तहत रत्नागिरी में भू-आकृतियों और शैलचित्र को 'संरक्षित स्मारक' के रूप में अधिसूचित किया है । के तहत 'संरक्षित स्मारक' यानी प्रोटेक्टेड मॉन्यूमेंट घोषित किया है।
जियोग्लिफ और पेट्रोग्लिफ क्या हैं?
जियोग्लिफ और पेट्रोग्लिफ धरती की सतह पर पाई जाने वाली अलग-अलग प्रकार की प्राचीन कलाएं हैं। इन दोनों में चट्टान सतहों पर डिजाइन या चित्र बने होते हैं।
पेट्रोग्लिफ्स: ये चट्टान की सतहों पर नक्काशी है। इनमें जानवरों, मनुष्यों या अलग-अलग पैटर्न बनाए गए हैं। रत्नागिरी में, पेट्रोग्लिफ में गैंडे, हिरण, बंदर, गधे और यहां तक कि पैरों के निशान जैसे जानवरों का चित्रण शामिल है। इस नक्काशी में प्राचीन काल के लोगों के जीवन की झलक दिखाई गई है।
जियोग्लिफ्स: ये जमीन पर बने बड़े डिजाइन हैं। इनमें अक्सर ऊपर से दिखाई देने वाले पैटर्न चट्टानों पर बने हैं।
भारत की नॉर्मल रॉक पेंटिंग से है अलग
भारत की नॉर्मल रॉक पेंटिंग से रत्नागिरी की कलाकृतियां काफी अलग हैं। इनमें समुद्री जीवों की छवियां, नदी के जानवरों का चित्रण, अलग-अलग जानवर (जो कभी इस क्षेत्र में मौजूद होंगे), सांप और मेंढक जैसे जीवों की छवियां और पक्षियों का चित्रण शामिल है।
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