दिल्ली सल्तनत - गुलाम वंश
गुलाम वंश का संस्थापक कौन था - कुतुबुद्दीन ऐबक U.P.P.C.S. (Pre) 1990
- 1206 ई. से 1290 ई. तक दिल्ली सल्तनत के सुल्तान गुलाम वंश के सुल्तानों के नाम से विख्यात हुए, जिसका संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक था।
गुलाम वंश का प्रथम शासक कौन था - कुतुबुद्दीन ऐबक B.P.S.C. (Pre) 2005/B.P.S.C. (Pre) 2011
- भारत में गुलाम वंश का प्रथम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक (1206 - 10 ई.) था।
- वह ऐबक नामक तुर्क जनजाति का था।
- बचपन में उसे निशापुर के काजी फखरुद्दीन अब्दुल अजीज कूकी ने एक दास के रुप में खरीदा था।
- काजी ने उसकी उचित ढ़ंग से देखभाल की और शिक्षाओं में पूर्ण कराया।
- ऐबक बचपन से ही अति सुरीले स्वर में कुरान पढ़ता था जिस कारण वह कुरान-ख्वाँ (कुरान का पाठ करने वाला) के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
- बाद में वह निशापुर से गजनी लाया गया जहाँ उसे गोरी ने खरीद लिया।
- गोरी ने उसे अमीर-ए-आखूर के पद पर प्रोन्नत कर दिया और यहीं से उसके जीवन का नया अध्याय आरंभ हुआ।
- वह दिल्ली का पहला तुर्क शासक था।
- उसी को भारत में तुर्की राज्य का संस्थापक भी माना जाता है।
- इसने अपना राज्यभिषेक गोरी के मृत्यु के तीन माह बाद जून 1206 में कराया था।
- ऐबक ने मलिक और सिपाहसालार की पदवी धारण किया।
- 1208 में दासता से मुक्ति मिलि।
दिल्ली सल्तनत का कौन सा सुल्तान लाख बख्श के नाम से जाना जाता है- कुतुबुद्दीन ऐबक P.C.S. (Pre) 2003
- अपनी उदारता के कारण कुतुबुद्दीन ऐबक इतना अधिक दान करता था कि उसे लाख बख्श (लाखों को देने वाला) के नाम से पुकारा गया।
- फरिश्ता ने लिखा है कि यदि व्यक्ति किसी की दानशीलता की प्रशंसा करते थे, तो उसे अपने युग का ऐबक पुकारते थे।
- ऐबक ने दिल्ली में कुव्वत-उल-इस्लाम और अजमेर में ढ़ाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिदों का निर्माण कराया था।
- उसने दिल्ली में स्थित कुतुबमीनार का निर्माण कार्य प्रारंभ किया जिसे इल्तुतमिश ने पूरा करवाया।
- फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल में इसकी चौथी मंजिल को काफी हानि पहुँची थी।
- जिस पर फिरोज ने चौथी मंजिल के स्थान पर दो और मंजिलों का भी निर्माण करवाया।
कुतुबुद्दीन ऐबक की राजधानी कहाँ थी - लाहौर में B.P.S.C. (Pre) 1996/U.P.P.C.S. (Pre) 1990
- ऐबक लाहौर जाकर सत्ता ग्रहण करता है 24 जून 1206 ई. को औपचारिक रुप से सिंहासन पर बैठता है।
- गद्दी पर बैठने के बाद ऐबक के सामने सबसे बड़ी कठिनाई गोरी के दास और उसके राज्य के उत्तराधिकारी ताजुद्दीन यल्दौज और नसिरुद्दीन कुबाचा की तरफ से थी।
- ऐबक ने अपनी बहन की शादी कुबाचा से कर उसे अपने पक्ष में कर लिया लेकिन यल्दौज की तरफ से खतरा बना रहा।
- यही कारण था कि ऐबक सदा लाहौर में ही रहा।
- उसे दिल्ली आने का कभी अवसर नहीं मिला।
सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु कैसे हुई - चौगान की क्रीड़ा के दौरान अश्व से गिरने के पश्चात उनकी मृत्यु हो गई I.A.S. (pre) 2003
- सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु चौगान के खेल (आधुनिक पोलो की भाँति का एक खेल) में घोड़े से गिरने के दौरान 1210 ई. में हुई थी।
- उसे लाहौर में दफनाया गया।
किसने दिल्ली को सल्तनत की राजधानी के रुप में स्थापित किया था - इल्तुतमिश U.P.P.C.S. (Spl) (Mains) 2004/U.P.P.C.S. (Mains) 2012
- इल्तुतमिश (1210 - 1236 ई.) ने दिल्ली को सल्तनत की राजधानी के रुप में स्थापित किया था।
- इससे पूर्व ऐबक ने लाहौर से ही शासन किया था।
- इल्तुतमिश ने ही भारत में सल्तनत काल में सर्वप्रथम शुद्ध अरबी सिक्के चलाए थे।
- सल्तनत युग के दो महत्वपूर्ण सिक्के चांदी का टंका (175 ग्रेन) और तांबे का जीतल उसी ने आरंभ किए तथा सिक्कों पर टकसाल का नाम लिखवानें की परंपरा शुरु की।
- 1229 में इल्तुमिश को बगदाद के खलीफा से खिलअत का प्रमाण पत्र प्राप्त हुआ जिससे इल्तुतमिश वैध सुल्तान और दिल्ली सल्तनत स्वतंत्र राज्य बन गया।
गुलाम का गुलाम किसे कहा गया था - इल्तुतमिश U.P.P.C.S. (Pre) 2016
- इल्तुतमिश ने सुल्तान-ए-आजम की उपाधि प्रदान की।
- इल्तुतमिश कानूनी तरीके से दिल्ली का प्रथम स्वतंत्र सुल्तान था।
- भारत में तुर्की राज्य को संगठित किया।
- मंगोल आक्रमण से बचाया।
- राजपूतों की शक्ति को तोड़ने का प्रयत्न किया।
- सुल्तान के पद को वंशानुगत बनाया।
- यह ऐबक का दामाद था।
- इल्तुतमिश ने 1211 ई. से 1236 ई. तक शासन किया
- अकस्मात् मृत्यु के कारण - कुतुबुद्दीन ऐबक अपने किसी उत्तराधिकारी का चुनाव नहीं कर सका। अतः लाहौर के तुर्क अधिकारियों ने कुतुबुद्दीन ऐबक के विवादित पुत्र आरामशाह (जिसे इतिहासकार नहीं मानते) को लाहौर की गद्दी पर बैठाया, लेकिन दिल्ली के तुर्को, सरदारो एवं नागरिकों के विरोध के फलस्वरुप कुतुबुद्दीन ऐबक के दामाद इल्तुमिश, जो उस समय बदाँयू का सूबेदार था। को दिल्ली आमंत्रित कर राज्य सिंहासन पर बैठाया गया।
- आरामशाह एवं इल्तुतमिश के बीच दिल्ली के निकट जड़ नामक स्थान पर लड़ाई हुआ, जिसमें आरामशाह को बन्दी बनाकर बाद में उसकी हत्या कर दी गयी और इस तरह ऐबक वंश के बाद इल्बरी वंश का शासन प्रारंभ हुआ।
- इल्तुतमिश इल्बरी जनजाति का तुर्क था।
मध्यकालीन भारत की प्रथम महिला शासिका कौन थी - रजिया सुल्तान U.P.P.C.S. (Mains) 2004/U.P.P.C.S. (GIC) 2010
- इल्तुमिश के कुल चार पुत्र-पुत्री थे।
- नसीर-उद-दीन महमूद, रुक्न-उद-दीन-फिरोज, रजिया सुल्तान मुइज-उद-दीन बहराम।
- मध्यकालीन भारत की प्रथम महिला शासिका रजिया सुल्तान (1236 - 1240) थी।
- राज तिलक - 10 नवंबर 1236 को हुआ। जन्म - 1205 मृत्यु - 14 अक्टूबर, 1240 को। स्थान - कैथल, हरियाणा में।
- समाधी - मोहल्ला बुलबुली खान, तुर्कमान गेट चांदनी चौक, दिल्ली, कैथल हरियाणा।
- पूर्वाधिकारी - रुकुनुद्दीन फिरोजशाह
- उत्तराधिकारी - मुईजु्द्दीन बहरामशाह
- माता - कुतुब बेगम
- पिता - शम्स-उद-दिन-इल्तुतमिश
- जीवनसंगी - अल्तुनिया
मंगोल आक्रमणकारी चंगेज खाँ भारत की उत्तर - पश्चिम सीमा पर सिक्के काल में आया था - इल्तुतमिश U.P.P.C.S. (Pre) 1993
- मंगोल नेता चंगेज खाँ भारत की उत्तर - पश्चिम सीमा पर इल्तुतमिश के शासनकाल में आया था।
- चंगेज खाँ के प्रकोप से रक्षार्थ ख्वारिज्म शाह का पुत्र जलालुद्दीन मंगबरनी सिंधु घाटी पहुँचा।
- संभवतः चंगेज खाँ ने इल्तुतमिश के पास अपने दूत भेजे थे कि वह मंगबरनी की सहायता न करे, अतः इल्तुतमिश ने उसकी कोई सहायता न की और जब मंग6रनी 1224 ई. में भारत से चला गया तो इस समस्या का समाधान हो गया।
- इल्तुतमिश चंगेज खाँ के समकालीन था।
चंगेज खान का मूल नाम था - तेमुचिन U.P.P.C.S. (Pre) 2015
- चंगेज खान एक मंगोल शासक था।
- जिसने मंगोल साम्राज्य के विस्तार में एक अहम भूमिका निभाई।
- चंगेज खान का वास्तविक या प्रारंभिक नाम तेमुजिन या तेमुचिन था।
दिल्ली के सुल्तान बलबन का पूरा नाम क्या था - गयासुद्दीन बलबन P.C.S. (Pre) 2004
- सुल्तान बलबन का पूरा नाम गयासुद्दीन बलबन था।
- बलबन ने 1266 से 1287 ई. तक सुल्तान के रुप में सल्तनत की बागडोर संभाली।
- उसे उलुग खां के नाम से भी जाना जाता है।
- उसका वास्तविक नाम बहाउद्दीन था।
- इल्तुतमिश की भांति वह भी इल्बरी तुर्क था।
- बलबन बचपन में ही मंगोलो द्वारा पकड़ लिया गया था जिन्होंने उसे गजनी में बसरा के निवासी ख्वाजा जमालुद्दीन के हाथों बेच दिया।
- 1232 ई. में उसे दिल्ली लाया गया जहाँ इल्तुतमिश ने 1233 ई. में ग्वालियर विजय के पश्चात उसे खरीदा।
- उसकी योग्यता से प्रभावित होकर इल्तुतमिश ने उसे खसदार का पद दिया।
- रजिया के काल में वह अमीर-ए-शिकार के पद पर पहुँच गया।
- रजिया के विरुद्ध षडयंत्र में उसने तुर्की सरदारों का साथ दिया, बहरामशाह के सुल्तान बनने के बाद उसे अमीर-ए-आखूर का पद मिला।
- बदरुद्दीन रुमी की कृपा से उसे रेवाड़ी की जागीर मिली।
- महमूदशाह को सुल्तान बनाने में उसने तुर्की अमीरों का साथ दिया जिसके बाद उसे हांसी की सूबेदारी दी गई। 1249 ई. में बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह सुल्तान नसिरुद्दीन से किया। इस अवसर पर उसे उलुग खाँ की उपाधि और नायब-ए-ममलिकात का पद दिया गया। 1266 ई. में बलबन दिल्ली की राजगद्दी पर आसीन हुआ था। दिल्ली के किस सुल्तान के विषय में कहा गया है कि उसने रक्त और लौह की नीति अपनाई थी - बलबन U.P.P.C.S. (Mains) 2009 बलबन के विषय में कहा गया है कि - उसने रक्त और लौह की नीति अपनाई थी। बलबन के राजत्व सिद्धांत की दो मुख्य विशेषताएं थी - (1) सुल्तान का पद ईश्वर के द्वारा प्राप्त होता है। (2) सुल्तान का निरंकुश होना आवश्यक है। उसके अनुसार सुल्तान पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि है और उसका स्थान पैगंबर के पश्चात है। सुल्तान को कार्य करने की प्रेरणा और शक्ति ईश्वर से प्राप्त होती है। इस कारण जनसाधारण या सरदारों को उसके कार्यो की आलोचना का अधिकार नहीं है। किस सुल्तान ने सिजदा प्रथा की शुरुआत की थी - गयासु्द्दीन बलबनगयासु्द्दीन बलबन U.P.P.C.S. (Pre) 1990 बलबन ने सम्राट के पद को दैवीय घोषित कर सारी सत्ता अपने हाथ में केंद्रित कर ली थी। इसने सिजदा व पैबोस प्रथा की शुरुआत भी की थी। बलबन ने मंगोलों के आक्रमण की रोकथाम करने के उद्देश्य से उत्तर पश्चिम सीमा पर सुदृढ़ दुर्गो का निर्माण कराया था। अपने शक्ति को समेकित करने के बाद बलबन ने भव्य उपाधि धारण की - जिल्ले - इलाही बलबन ने फारस के लोक - प्रचलित वीरों से प्रेरणा लेकर अपना राजनीतिक आदर्श निर्मित किया था। उनका अनुकरण करते हुए राजत्व की प्रतिष्ठा को उच्च सम्मान दिलाने का प्रयत्न किया। राजा को धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि नियामत-ए-खुदाई माना गया। बलबन के अनुसार मान - मर्यादा में वह केवल पैगंबर के बाद है। राजा जिल्ले अल्लाह या जिल्ले इलाही जिसका मतलब होता है ईश्वर का प्रतिबिंब है। बलबन दिल्ली का प्रथम सुल्तान था, जिसने राजत्व संबंधी सिद्धांतो की स्थापना की। उसने पुत्र बुगरा खाँ से कहा था - सुल्तान का पद निरंकुशता का सजीव प्रतीक है। किसने भारत में प्रसिद्ध फारसी त्यौहार नौरोज को आरंभ करवाया - बलबन अपने दरबार के लिए बलबन ने एक बड़े सुल्तान के दरबार के अनुरुप नियम बनाएं और उन्हें कठोरता से लागू किया। इस क्षेत्र में उसका आदर्श बादशाह थे और उसने उनकी कई परंपराओं को अपने दरबार में आरंभ किया। उसने सिजदा (भूमि पर लेटकर अभिवादन करना) और पाबोस (सुल्तान के चरणों को चूमना) की रीतियां आरंभ की। उसने अपने दरबार में प्रति वर्ष फारसी त्यौहार नौरोज बड़ी शानो - शौकत के साथ मनाने की प्रथा आरंभ की। बलबन को उलुग खां की उपाधि किसने दी थी - नसिरुद्दीन महमूद बलबन का वास्तविक नाम बहाउद्दीन था।
- दी गई।
- 1249 ई. में बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह सुल्तान नसिरुद्दीन से किया।
- इस अवसर पर उसे उलुग खाँ की उपाधि और नायब-ए-ममलिकात का पद दिया गया।
- 1266 ई. में बलबन दिल्ली की राजगद्दी पर आसीन हुआ था।
दिल्ली के किस सुल्तान के विषय में कहा गया है कि उसने रक्त और लौह की नीति अपनाई थी - बलबन U.P.P.C.S. (Mains) 2009
- बलबन के विषय में कहा गया है कि - उसने रक्त और लौह की नीति अपनाई थी।
- बलबन के राजत्व सिद्धांत की दो मुख्य विशेषताएं थी - (1) सुल्तान का पद ईश्वर के द्वारा प्राप्त होता है। (2) सुल्तान का निरंकुश होना आवश्यक है।
- उसके अनुसार सुल्तान पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि है और उसका स्थान पैगंबर के पश्चात है। सुल्तान को कार्य करने की प्रेरणा और शक्ति ईश्वर से प्राप्त होती है। इस कारण जनसाधारण या सरदारों को उसके कार्यो की आलोचना का अधिकार नहीं है।
किस सुल्तान ने सिजदा प्रथा की शुरुआत की थी - गयासु्द्दीन बलबनगयासु्द्दीन बलबन U.P.P.C.S. (Pre) 1990
- बलबन ने सम्राट के पद को दैवीय घोषित कर सारी सत्ता अपने हाथ में केंद्रित कर ली थी।
- इसने सिजदा व पैबोस प्रथा की शुरुआत भी की थी।
- बलबन ने मंगोलों के आक्रमण की रोकथाम करने के उद्देश्य से उत्तर पश्चिम सीमा पर सुदृढ़ दुर्गो का निर्माण कराया था।
अपने शक्ति को समेकित करने के बाद बलबन ने भव्य उपाधि धारण की - जिल्ले - इलाही I.A.S. (Pre) 1997
- नसिरुद्दीन महमूद ने उसे उलुग खां की उपाधि दी थी।
- जिल्ले अल्लाह की उपाधि उसने स्वयं धारण की थी।
- उसका शासनकाल 1266 से 1286 ई. तक था।
- बलबन अपने राजत्व संबंधी विचारों के लिए प्रसिद्ध है।
- उसके राजत्व के सिद्धांत का स्वरुप और सार फारस के राजत्व से प्रेरित था।
- बलबन ने राजा को नियामते खुदाई (ईश्वर का प्रतिनिधि) बताया है।
- सत्ता ग्रहण करने के बाद बलबन ने इल्तुतमिश द्वारा गठित तुर्कान-ए-चहलगानी के गठन को समाप्त किया।
- बलबन के काल में एक मात्र विद्रोह 1279 ई. में बंगाल के सुबेदार तुगरिल खाँ ने किया था जिसे बलबन ने दबाया तथा विद्रोहियों को मृत्युदंड दिया।
सुल्तानों में से किसने गढ़मुक्तेश्वर की मस्जिद की दीवारों पर अपने शिलालेख में स्वयं को खलीफा का सहायक कहा है - बलबन U.P.R.O/A.R.O. (Mains) 2014
- बलबन ने गढ़मुक्तेश्वर के मस्जिद के दीवारों पर उत्कीर्ण शिलालेख पर स्वयं को खलीफा का सहायक कहा है।
इक्तादारी व्यवस्था को किसने प्रारंभ किया - इल्तुतमिश U.P.P.C.S. (Pre) 1990
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