आपात उपबंध

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आपात उपबन्ध एवं उसके प्रकार

आपात उपबन्ध -

  • भारतीय संविधान में तीन प्रकार के आपात काल की व्यवस्था की गई है

1. राष्ट्रीय आपात (अनुच्छेद-352)

2. राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद-356)

3. वित्तीय आपात (अनुच्छेद-360)


राष्ट्रीय आपात (अनुच्छेद-352) :

इसकी घोषणा निम्नलिखित में से किसी भी आधार पर राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है।

1. युद्ध

2. बाह्य आक्रमण

3. सशस्त्र विद्रोह


  • राष्ट्रीय आपात की घोषणा राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की लिखित सिफारिश पर करता है। राष्ट्रीय आपात की उद्धोषणा को न्यायालय में प्रश्नगत किया जा सकता है।
  • 44वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद-352 के अधीव उद्घोषणा सम्पूर्ण भारत में या उसके किसी भाग में की जा सकती है।
  • राष्ट्रीय आपात के समय राज्य सरकार निलंबित नहीं की जाती है; अपितु वह संघ की कार्यपालिका के पूर्ण वियंत्रण में आ जाती है।
  • राष्ट्रपति द्वारा की गई आपात की घोषणा एक माह तक प्रवर्तन में रहती है और यदि इस दौराव इसे संसद के दो-तिहाई बहुमत से अनुमोदित करवा लिया जाता है, तो वह छह माह तक प्रवर्तन में रहती है।
  • संसद इसे पुनः एक बार में छह महीने तक बढ़ा सकती है।
  • यदि आपात की उद्घोषणा तब की जाती है, जब लोकसभा का विघटन हो गया हो या लोकसभा का विघटन एक मास के अंतर्गत आपात उद्घोषणा का अनुमोदन किये बिना हो जाता है, तो आपात उद्घोषणा लोकसभा की प्रथम बैठक की तारीख से 30 दिन के अंदर अनुमोदित होना चाहिए, अन्यथा 30 दिन के बाद यह प्रवर्तन में नहीं रहेगी।
  • यदि लोकसभा साधारण बहुमत से आपात उद्घोषणा को वापस लेने का प्रस्ताव पारित कर देती है, तो राष्ट्रपति को उद्घोषणा वापस लेनी पड़ती है।
  • आपात उद्धोषणा पर विचार करने के लिए लोकसभा का विशेष अधिवेशन तब आहूत किया जा सकता है, जब लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 1/10 सदस्यों द्वारा लिखित सूचना लोकसभा अध्यक्ष को, जब सत्र चल रहा हो या राष्ट्रपति को, जब सत्र नहीं चल रहा हो, दी जाती है।
  • लोकसभा अध्यक्ष या राष्ट्रपति सूचना-प्राप्ति के 14 दिनों के अंदर लोकसभा का विशेष अधिवेशन आहूत करते हैं।

आपातकाल की उद्घोषणा के प्रभाव जब कभी संविधान के अनुच्छेद-352 के अंतर्गत आपातकाल की उद्धोषणा होती है, तो इसके ये प्रभाव होते हैं -

  • 1. राज्य की कार्यपालिका शक्ति संघीय कार्यपालिका के अधीन हो जाती है।
  • 2. संसद की विधायी शक्ति राज्य सूची से संबद्ध विषयों तक विस्तृत हो जाती है। अर्थात संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। अत: केंद्र तथा राज्यों के मध्य विधायी शक्तियों के सामान्य वितरण का निलंबन हो जाता है, यद्यपि राज्य विधायिका विलंबित नहीं होती। संक्षेप में संविधान संघीय की जगह एकात्मक हो जाता है। संसद द्वारा आपातकाल में राज्य के विषयों पर बनाये गए कानून आपातकाल की समाप्ति के बाद छह माह तक प्रभावी रहते हैं।
  • 3. जब राष्ट्रीय आपातकाल की उद्धोषणा लागू हो तब राष्ट्रपति केंद्र तथा राज्यों के मध्य करों के संवैधानिक वितरण को संशोधित कर सकता है| इसका तात्पर्य यह है कि राष्ट्रपति केंद्र से राज्यों को दिए  जाने वाले धन (वित्त) को कम अथवा समाप्त कर सकता है ऐसे संशोधन उस वित्त वर्ष की समाप्ति तक जारी रहते हैं जिसमें आपातकाल समाप्त होता है।
  • 4. राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में लोकसभा का कार्यकाल इसके सामान्य कार्यकाल (5 वर्ष) से आगे संसद द्वारा विधि बनाकर एक समय में एक वर्ष के लिए (कितने भी समय तक) बढ़ाया जा सकता है किन्तु यह विस्तार आपातकाल की समाप्ति के बाद छह माह से ज्यादा नहीं हो सकता। उदाहरण के लिए पांचवीं लोकसभा (1971-77) का कार्यकाल दो बार एक समय में एक वर्ष के लिए बढ़ाया गया था।
  • 5. अनुच्छेद-358 एवं 359 राष्ट्रीय आपातकाल में मूल अधिकार पर प्रभाव का वर्णन करते है।
  • अनुच्छेद-358, अनुच्छेद-19 द्वारा किये गए मूल अधिकारों के निलंबन से संबंधित है, जबकि अनुच्छेद-359 अन्य मूल अधिकारों के निलंबन (अनुच्छेद-20 एवं 21 द्वारा प्रदत्त अधिकारों कोछोड़कर) से संबंधित है। अनुच्छेद-358 के अनुसार जब राष्ट्रीय आपात की उद्धोषणा की जाती है तब अनुच्छेद-19 द्वारा प्रदत्त छह मूल अधिकार स्वत: ही निलंबित हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में, राज्य अनुच्छेद-19 द्वारा प्रदत्त 6 मूल अधिकारों को कम करने अथवा हटाने के लिए कानून बना सकता है अथवा कोई कार्यकारी निर्णय ले सकता है ऐसे किसी कानून अथवा कार्य को, इस आधार पर कि यह अनुच्छेद-19 द्वारा प्रदत्त 6 मूल अधिकारों का उल्लंघन है, चुनौती नहीं दी जा सकती। जब राष्ट्रीय आपातकाल समाप्त हो जाता है, अनुच्छेद-19 स्वत: पुनर्जीवित हो जाता है।
  • 1978 के 44वें संशोधन अधिनियम ने अनुच्छेद-358 की संभावना पर दो प्रकार से प्रतिबंध लगा दिया है। प्रथम अनुच्छेद-19 द्वारा प्रदत्त छह मूल अधिकारों को युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण के आधार पर घोषित आपातकाल में ही निलंबित किया जा सकता है न कि सशस्त्र विद्रोह के आधार पर। दूसरे, केवल उन विधियों को जो आपातकाल से संबंधित हैं, चुनौती नहीं दी जा सकती है तथा ऐसे विधियों के अंतर्गत दिए गए कार्यकारी निर्णयों को भी चुनौती नहीं दी जा सकती है।
  • अन्य मूल अधिकारों का निलंबन : अनुच्छेद-359 राष्ट्रपति को आपातकाल में मूल अधिकारों को लागू करने के लिए न्यायालय जाने के अधिकार को निलंबित करने के लिए अधिकृत करता है। अत: 359 के अंतर्गत मूल अधिकार नहीं अपितु उनका लागू होना निलंबित होता है। वास्तविक रूप में ये अधिकार जीवित रहते हैं केवल इनके तहत उपचार निलंबित होता है। यह निलंबन उन्हीं मूल अधिकारों से संबंधित होता है, जो राष्ट्रपति के आदेश में वर्णित होते हैं। जब राष्ट्रपति का आदेश प्रभावी रहता है तो राज्य उस मूल अधिकार को रोकने व हटाने के लिए कोई भी विधि बना सकता है या कार्यकारी कदम उठा सकता है।
  • ऐसी किसी भी विधि या कार्य को इस आधार पर चुनीती नहीं दी जा सकती है कि यह संबंधित मूल अधिकार से साम्य नहीं रखता। इस विधि के प्रभाव में किये गए विधायी व कार्यकारी कार्यों को आदेश समाप्ति के उपरान्त चुनौती नहीं दी जा सकती है।
  • 1978 के 44वें संशोधन अधिनियम ने अनुच्छेद-358 की संभावना पर दो प्रकार से प्रतिबंध लगा दिया है।
  • प्रथम अनुच्छेद-19 द्वारा प्रदत्त छह मूल अधिकारों को युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण के आधार पर घोषित आपातकाल में ही निलंबित किया जा सकता है न कि सशस्त्र विद्रोह के आधार पर।
  • दूसरे, केवल उन विधियों को जो आपातकाल से संबंधित हैं, चुनौती नहीं दी जा सकती है तथा ऐसे विधियों के अंतर्गत दिए गए कार्यकारी निर्णयों को भी चुनौती नहीं दी जा सकती है।
  • अनुच्छेद-356 के अधीन राष्ट्रपति किसी राज्य में यह समाधान हो जाने पर कि राज्य में सांविधानिक तंत्र विफल हो गया है अथवा राज्य संघ की कार्यपालिका के किन्हीं निर्देशों का अनुपालन करने में असमर्थ रहता है, तो आपात स्थिति की घोषणा कर सकता है। राज्य में आपात की घोषणा के बाद संघ न्यायिक कार्य छोड़कर राज्य प्रशासन के कार्य अपने हाथ में ले लेता है।
  • राज्य में आपात उद्धोषणा की अवधि दो मास होती है। 
  • इससे अधिक के लिए संसद से अनुमति लेनी होती है तब यह छह माह की होती है।
  • अधिकतम तीन वर्ष तक यह एक राज्य के प्रवर्तन में रह सकती है | इससे अधिक के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ता है।
  • सर्वप्रथम 20 जुलाई, 1951 ई. में पंजाब राज्य में अनुच्छेट-356 का प्रयोग किया गया। (भार्गव मंत्रिमंडल के पतन का कारण)
  • नोट : सर्वाधिक समय तक अनुच्छेद-356 का प्रयोग जम्मू-कश्मीर राज्य में रहा। (19.07.1990 ई. से 09.10.1996 ई.तक)
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Exam List

आपातकाल एवं जम्मूकश्मीर - 01
  • Question 20
  • Min. marks(Percent) 50
  • Time 20
  • language Hin & Eng.
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