सीमावर्ती राज्यों का इतिहास

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हर्षवर्धन का इतिहास

हर्षवर्धन का इतिहास 

हर्षवर्धन एक भारतीय सम्राट थे, जिन्होंने चालीस वर्षों से अधिक समय तक भारत के उत्तरी हिस्सों पर शासन किया था। उनका साम्राज्य पंजाब, बंगाल, उड़ीसा आदि कई राज्यों तक फैला हुआ था। हर्षवर्धन को अनेक उपाधियों से विभूषित किया गया है जैसे कि महाराजाधिराज, पुरुषोत्तम आदि|

हर्षवर्धन का इतिहास-

 हर्षवर्धन का संबंध थानेश्वर के वर्धन या पुष्यभूति वंश से था| हर्षवर्धन का जन्म 590 ईसवी में हुआ था| हर्ष का जन्म थानेसर (हरियाणा) में हुआ था।हर्षवर्धन के पिता का नाम प्रभाकरवर्धन तथा माता का नाम यशोमती था| हर्षवर्धन के बड़े भाई का नाम राज्यवर्धन तथा उसकी बहन का नाम राज्यश्री था| राज्यश्री का विवाह कन्नौज के मौखरि शासक गृहवर्मा के साथ हुआ था| हर्षवर्धन अत्यंत विकट परिस्थितियों में राजगद्दी पर आसीन हुआ था|

 

 हर्षवर्धन किस वंश का था?- पुष्यभूति वंश

नाम                 हर्षवर्धन

पिता का नाम प्रभाकरवर्धन

माता का नाम यशोमती

बहन का नाम राज्यश्री

भाई का नाम राज्यवर्धन

राज्यारोहण       606 ईसवी

 राजधानी        थानेश्वर और कन्नौज

हर्षवर्धन की मृत्यु   647 ईसवी

 

हर्षवर्धन का राज्यारोहण-

पिता की मृत्यु के पश्चात राज्यवर्धन थानेश्वर की गद्दी पर आसीन हुआ था और उसी समय उसे खबर मिली कि बंगाल के शासक शशांक और मालवा के राजा देवगुप्त ने मिलकर कन्नौज पर आक्रमण कर दिया है उन दोनों ने मिलकर गृहवर्मा की हत्या कर दी है और उसकी बहन राज्यश्री को कैद में डाल दिया है| शशांक और देवगुप्त की योजना थानेश्वर पर भी आक्रमण करने की थी और खबर को सुनकर राजवर्धन कन्नौज की सुरक्षा के लिए आगे बढ़ा| राजवर्धन में बड़े ही शौर्य का परिचय देते हुए देवगुप्त की सेना को पराजित कर दिया परंतु शशांक ने धोखे से उसकी हत्या कर दी| बड़े भाई राज्यवर्धन की मृत्यु के पश्चात 606 ईस्वी में हर्षवर्धन का राज्य रोहण हुआ और वह थानेश्वर का राजा बना| जिस समय हर्षवर्धन सिंहासन पर आसीन हुआ था उस समय उसकी उम्र मात्र 16 वर्ष की थी|

जब हर्षवर्धन सिंहासन पर बैठा तब उसके सामने तीन प्रमुख समस्याएं थी-

1- अपने भाई राज्यवर्धन के हत्यारों से प्रतिशोध लेना|

2- ग्रहवर्मा की हत्या का प्रतिशोध लेना|

3- अपनी बहन राज्यश्री का पता लगाना|

 

सिंहासन पर आसीन होने के पश्चात उसने शशांक और देवपुत्र से बदला लेने की प्रतिज्ञा की तथा अपनी बहन राज्यश्री की सुरक्षा के लिए वह कन्नौज की तरफ आगे बढ़ा| हर्षवर्धन जब कन्नौज की तरफ आगे बढ़ रहा था तो रास्ते में उसे कामरूप के राजा भास्करवर्मन का दूत हंसबेग मिला| हंसबेग ने अपने राजा की ओर से हर्षवर्धन के समक्ष मित्रता का प्रस्ताव रखा जिसे हर्षवर्धन ने स्वीकार कर लिया| और आगे बढ़ने पर उसे भाण्डी (यशोमती के भाई का पुत्र) से सूचना मिली की उसकी बहन राज्यश्री कैद से मुक्त होकर विंध्याचल की और चली गई है| इस खबर को सुनने के पश्चात वह कन्नौज का मार्ग छोड़कर विंध्याचल की ओर आगे बढ़े| बौद्ध भिक्षु आचार्य दिवाकरमित्र की सहायता से हर्षवर्धन ने राज्यश्री को खोज निकाला, वास्तव में राज्यश्री विंध्याचल सती होने के लिए गई थी| राज्यश्री को हर्षवर्धन अपने साथ कन्नौज वापस ले आया| क्योंकि कन्नौज में गृहवर्मा की हत्या हो गई थी और उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं था, अतः कन्नौज के मंत्रियों एवं राज्यश्री की सहमति से हर्षवर्धन कन्नौज का भी शासक बन गया और वहां के शासन कार्य को वह संचालित करने लगा|

 

हर्षवर्धन की राजधानी-

जब हर्षवर्धन राजगद्दी पर आसीन हुआ तब उसकी राजधानी थानेश्वर थी परंतु जब वह कन्नौज के सिंहासन पर बैठा तो उसने अपनी राजधानी थानेश्वर से कन्नौज स्थानांतरित कर ली अर्थात हर्षवर्धन की पहली राजधानी का नाम थानेश्वर तथा दूसरी राजधानी का नाम कन्नौज था|

 

हर्षवर्धन की विजयें-

जिस समय हर्षवर्धन राजगद्दी पर विराजमान हुआ था उस समय उसने अपने राज्य विस्तार का कार्य प्रारंभ किया| हर्षवर्धन के समय में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया था और पंचांग के अनुसार हर्षवर्धन ने सम्राट बनने के पश्चात 6 वर्षों में भारत के एक बड़े भूभाग पर विजय प्राप्त कर ली थी| हर्षवर्धन के शासन काल के प्रारंभ के 6 वर्ष बढ़ेगी कड़े संघर्ष और युद्धों में व्यतीत हुए थे| हर्षवर्धन का प्रथम सैनिक अभियान शशांक के विरुद्ध था, परंतु इस अभियान में वह शशांक को पराजित नहीं कर सका था और जब शशांक की मृत्यु हो गई तब हर्षवर्धन ने बंगाल पर पुनः आक्रमण किया और मगध तथा उड़ीसा के क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया|

 

  • वल्लभी के राजा के साथ युद्ध- जिस समय हर्षवर्धन का शासन काल था उस समय मैत्रिक वंश काठियावाड़ पर शासन कर रहा था| किस वंश की राजधानी वल्लभी थी और सैनिक दृष्टि से वल्लभी का बहुत महत्वपूर्ण स्थान था| हर्षवर्धन ने वल्लभी पर आक्रमण किया और वह सीन को पराजित किया था|
  • चालुक्य साम्राज्य पर आक्रमण- तत्कालीन भारत के महाराष्ट्र के क्षेत्र में चालुक्य वंश राज्य कर रहा था| चालुक्य वंश का राजा पुलकेशिन द्वितीय था| हर्षवर्धन ने पुलकेशिन द्वितीय पर आक्रमण किया परंतु इस युद्ध में हर्षवर्धन को पराजय का सामना करना पड़ा था|
  • पूर्वी विजय- हर्ष को पूर्व के क्षेत्रों में विजय प्राप्त हुई थी| 641 ईसवी में उसने मगध के राजा की उपाधि धारण की और कामरूप राजा से मैत्री भी की थी|
  • उड़ीसा की विजय- हर्षवर्धन ने अपना अंतिम आक्रमण उड़ीसा के गंजाम कर दिया था वहां के राजा ने हर्षवर्धन की अधीनता को स्वीकार कर लिया था|

 

हर्षवर्धन का साम्राज्य विस्तार-

हर्षवर्धन ने एक बड़े साम्राज्य की स्थापना की थी| उसका साम्राज्य उत्तर में हिमालय पर्वत से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक और पूर्व में आसाम से लेकर पश्चिम में सौराष्ट्र तक फैला हुआ था| हर्ष का प्रभाव क्षेत्र काफी बृहद था और कई छोटे बड़े राज्य उसकी अधीनता को स्वीकार करते थे| कुछ इतिहासकारों के मतानुसार 18 से 20 राज्य हर्षवर्धन की अधीनता को स्वीकार करते थे|

 

राजा हर्षवर्धन का शासन प्रबंध-

हर्षवर्धन शासन प्रबंध में बहुत ही कुशल था और उसका अनुकरण अनेक राजाओं ने भी किया है| हर्ष की शासन व्यवस्था राजतंत्रात्मक थी और उसकी व्यवस्था में राजा केंद्रीय शासन का प्रधान होता था| युद्ध के समय हर्षवर्धन स्वयं मोर्चे पर जाता था| प्रजा के हित के कार्यों में वह सदैव तत्पर रहता था और उसने प्रजा की दशा को सुधारने के कई महत्वपूर्ण कार्य भी किए| राजा के सहयोग के लिए एक मंत्रिपरिषद की होती थी| हर्ष ने एक विशाल सेना का संगठन किया था जिसमें हाथी घोड़े और पैदल सैनिक थे| हर्ष के शासन काल में राजा न्याय विभाग का सर्वोच्च होता था और उसका न्याय विधान काफी कठोर था| हर्षवर्धन का शासन क्षेत्र बहुत ही विशाल था और उसने अपने राज्य को कई भागों में विभाजित किया था| इन छोटे-छोटे जिलों की देखभाल राजकुल के राजकुमार करते थे| इन जिलों का शासक विषयपति के नाम से जाना जाता था| शासन की सबसे छोटी इकाई गांव होती है| सम्राट हर्षवर्धन के समय में राजस्व विभाग भी निर्धारित किया गया था और वह प्रजा से उपज का छठा भाग कर के रूप में लेता था|

 

हर्षवर्धन की मृत्यु-

हर्षवर्धन ने भारतीय उपमहाद्वीप पर लगभग 41 साल तक शासन कार्य किया था| हर्षवर्धन की मृत्यु के बारे में बहुत अच्छी जानकारी इतिहास में दर्ज नहीं है परंतु ऐसा माना जाता है की उनका विवाह दुर्गावती से हुआ था और उनके दो पुत्र थे जिनके नाम वाग्यवर्धन और कल्याणवर्धन थे, पर उनके दोनों बेटों की हत्या एक मंत्री ने कर दी थी| इसके बाद 647 ईसवी में सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु हो गई थी| क्योंकि हर्षवर्धन के पास कोई उत्तराधिकारी नहीं था इसलिए उसका साम्राज्य बहुत तेजी से विघटित हुआ और फिर छोटे-छोटे कई राज्यों में बँट गया|

 

हर्षवर्धन की रचनाएं-

हर्षवर्धन की प्रमुख रचनाओं का नाम रत्नावली, नागानंद, प्रियदर्शिका आदि है|

 

हर्षवर्धन का प्रयाग सम्मलेन-

हर्षवर्धन वस्तुतः बौद्ध धर्म का समर्थक था परंतु वह ब्राम्हण धर्म में भी रुचि रखता था| वह प्रत्येक 5 वर्ष पर प्रयाग में महामोक्ष परिषद का आयोजन करवाता था और इस महामोक्ष परिषद में बुद्ध, सूर्य और शिव की पूजा होती थी| हर्षवर्धन इस अवसर पर अपने 5 वर्षों की अर्जित की गई संपत्ति यहां पर दान में दे देता था| वह अपने वस्त्र भी दान में दे देता था| चीनी यात्री ह्वेनसांग ने छठे प्रयाग परिषद का उल्लेख करते हुए लिखा है कि इस अवसर पर लगभग 5 लाख व्यक्ति प्रयाग में एकत्रित हुए थे और यह परिषद 75 दिनों तक चली थी| इस परिषद में प्रथम दिन बुद्ध की पूजा होती थी इसके बाद दूसरे दिन सूर्य तथा तीसरे दिन शिव की पूजा होती थी| चौथे दिन दान दिया जाता था|

 

हर्षवर्धन के अभिलेख-

सम्राट हर्षवर्धन के दो महत्वपूर्ण अभिलेख प्राप्त हुए हैं-

(1) मधुबन अभिलेख- मधुबन आजमगढ़ उत्तर प्रदेश में स्थित है|

(2) बांसखेड़ा अभिलेख- बांसखेड़ा शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश में स्थित है|

 

बांसखेड़ा अभिलेख में राजा हर्षवर्धन के शासन काल की महत्वपूर्ण घटनाओं और उसकी प्रशासनिक व्यवस्थाओं का उल्लेख मिलता है| इसके अतिरिक्त हर्षवर्धन के काल की दो मुहँरें भी नालंदा और सोनपत से प्राप्त हुई हैं| पुलकेशिन द्वितीय का ऐहोल अभिलेख हर्षवर्धन के जीवन पर प्रकाश डालता है| इस अभिलेख में हर्षवर्धन और पुलकेशिन द्वितीय के मध्य युद्ध का विवरण किया गया है जिसमें पुलकेशिन द्वितीय ने हर्षवर्धन को पराजित कर दिया था|

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सीमावर्ती राज्यों का इतिहास - 01
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