उसने स्वयं को पैगम्बर मुहम्मद साहब का वंशज बताया था।
उसके पूर्वज अरब से मुल्तान में आ कर बस गये थे।
तैमूर के आक्रमण (1398 ई.) के समय खिज्र खाँ उसके साथ हो गया और तैमूर ने भारत छोड़ने से पहले मुल्तान, लाहौर, दियालपुर की सूबेदारी प्रदान की।
1914 ई. में खिज्र खाँ ने दौली खाँ लोदी से दिल्ली छीन कर दिल्ली का पहला सैयद सुल्तान बना।
खिज्र खाँ ने सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की थी अपितु वह रैयत - ए - आला की उपाधि से ही संतुष्ट रहा।
वह उसने कई वर्षो तक शाहरुख के नाम से ही खुतबा पढ़वाया।
इसके साथ ही वह अपने सिक्कों पर तुगलक शासकों के नाम ही रहने दिया।
उसने सम्प्रभुता सम्पन्न शासक के रुप में शासन नहीं किया अपितु उसने तैमूर के पुत्र शाहरुख के प्रतिनिधि उद्देश्य तुर्क एवं अफगान सरदारों को सन्तुष्ट रखना और अपनी प्रजा की सहानुभूति प्राप्त करना था।
मुबारकशाह (1421 - 1434 ई.)
खिज्र खाँ की मृत्यु (1421 ई.) के बाद उसका पुत्र मुबारक खाँ मुबारकशाह के नाम से सिंहासन पर बैठा।
इसने शाह की उपाधि धारण की तथा अपने नाम से खुतबा पढ़वाया और अपने नाम से सिक्के चलवाये।
मुबारकशाह ने यमुना नदी के तट पर मुबारकशाह नामक नवीन नगर बसाया।
उसने तारीखे - मुबारकशाही के लेखक याहिया बिन सिरहिन्दी को संरक्षण प्रदान किया।
मुबारकशाह के वजीर सरवर - उल - मुल्क ने मुबारकाबाद के निरीक्षण के वक्त 1443 ई. में उसकी हत्या कर दी।
मुहम्मदशाह (1434 - 1445 ई.)
मुबारकशाह के बाद उसका भाई मुहम्मद शाह गद्दी पर बैठा।
इसने बहलोल लोदी का सम्मान किया तथा उसे पुत्र कह कर पुकारा और खान - ए - खाना की उपाधि प्रदान की।
इसकी मृत्यु 1445 ई. में हो गयी।
इसके समय सैयद वंश का पतन प्रारंभ हो गया।
अलाउद्दीन आलमशाह (1445 - 1450 ई.)
अलाउद्दीन आलमशाह सैयद वंश का अंतिम शासक था।
वह अपने वजीर हमीर खाँ से झगड़ा कर बदायूँ चला गया और अपनी मृत्यु (1476 ई.) तक बदायूँ पर शासन करता रहा।
1450 ई. में बहलोल लोदी ने हमीद खाँ को मरवा दिया और संपूर्ण शासन अपने हाथों में ले लिया।