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ज्ञानपीठ पुरस्कार की स्थापना 1961 में हुई थी और इसे पहली बार 1965 में मलयालम लेखक जी. शंकर कुरुप को प्रदान किया गया था। यह पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा दिया जाता है और यह केवल भारतीय लेखकों को, जो संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाओं या अंग्रेजी में लिखते हैं, प्रदान किया जाता है। पुरस्कार में 11 लाख रुपये की नकद राशि, वाग्देवी (सरस्वती) की कांस्य प्रतिमा और एक प्रशस्ति पत्र शामिल होता है। यह सम्मान किसी लेखक के आजीवन साहित्यिक योगदान को मान्यता देता है और इसे मरणोपरांत नहीं दिया जाता।
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में हुआ था। उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य में एक अनूठी पहचान रखती हैं। उनकी लेखनी में जीवन की साधारण घटनाओं को असाधारण ढंग से प्रस्तुत करने की कला है। उनके प्रमुख उपन्यासों में नौकर की कमीज, दीवार में एक खिड़की रहती थी, और खिलेगा तो देखेंगे शामिल हैं। इसके अलावा, उनकी कविताएँ भी बेहद लोकप्रिय हैं, जैसे लगभग जय हिंद, वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह, और कविता से लंबी कविता। उनकी रचनाओं में गहरी संवेदनशीलता और मानवीय भावनाओं का चित्रण मिलता है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर कर देता है।
शुक्ल जी की शैली सरल होते हुए भी जटिल भावनाओं को व्यक्त करने में सक्षम है। उनकी रचनाएँ रोजमर्रा के जीवन को एक दार्शनिक नजरिए से देखती हैं, जिसके कारण वे हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। उनकी कृति नौकर की कमीज को 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था, और अब ज्ञानपीठ पुरस्कार उनके साहित्यिक योगदान का सबसे बड़ा प्रमाण है।
विनोद कुमार शुक्ल को यह पुरस्कार 2024 के लिए दिया गया है, और यह हिंदी साहित्य के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। इससे पहले 58वां ज्ञानपीठ पुरस्कार (2023) उर्दू कवि गुलज़ार और संस्कृत विद्वान जगद्गुरु रामभद्राचार्य को संयुक्त रूप से दिया गया था। शुक्ल जी यह सम्मान पाने वाले हिंदी के 12वें लेखक हैं। हिंदी और कन्नड़ भाषा के लेखकों को यह पुरस्कार सबसे अधिक बार मिला है, जो इन भाषाओं की साहित्यिक समृद्धि को दर्शाता है।
इस पुरस्कार की घोषणा के साथ ही सोशल मीडिया पर भी लोगों ने अपनी खुशी जाहिर की है। कई लोगों ने उनकी रचनाओं के अंश साझा किए और उनके योगदान की सराहना की। यह सम्मान न केवल विनोद कुमार शुक्ल के लिए, बल्कि छत्तीसगढ़ और हिंदी साहित्य के लिए भी गर्व का विषय है।
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