कच्चातिवु द्वीप विवाद | Kachchativu Island issue, Social Issue Study by Nitin Sir
0
कच्चातिवु द्वीप विवाद | Kachchativu Island issue, Social Issue Study by Nitin Sir
🔴 क्या है कच्चातिवु द्वीप की कहानी,
🟠 जमीन का वो कीमती टुकड़ा, जिसे इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को गिफ्ट में दे दिया,
🟡 क्या है कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंपने का मामला,
🟢 BJP-कांग्रेस जिस कच्चातिवु द्वीप पर भिड़ रही हैं, उसे श्री लंका को क्यों दिया गया,
🔵 श्रीलंका के साथ मछुआरों का मुद्दा,
🟣 लोकसभा चुनाव से पहले क्यों उठा कच्चातिवु द्वीप का मुद्दा,
⚫ कच्चातीवू द्वीप विवाद से क्या खराब होंगे भारत-श्रीलंका संबंध,
⚪ कहां है ये कच्चातिवु द्वीप, क्या है इससे जुड़ा विवाद,
कच्चातिवु द्वीप →
इस द्वीप की कहानी एक जलडमरूमध्य से शुरु होती है। जो हिन्द महासागर में भारत के दक्षिणी छोर और पड़ोसी देश श्रीलंका के बीच स्थित है। इसका नाम है पाक जलडमरूमध्य।
क्या है कच्चातिवु द्वीप →
यह द्वीप लगभग 285 एकड़ का हरित क्षेत्र है। इस क्षेत्र में भारतीय मछुआरों पर बार-बार श्रीलंकाई नौसेना द्वारा
हमला करना,
गिरफ्तार करना और
न्यायिक हिरासत में भेजना
एक नियमित मामला बन गया है। श्रीलंकाई सरकार मछुआरों की जब्त नौकाओं और मछली जालों को पुनः वापस नहीं करती इससे मछुआरों को अत्यधिक धन की हानि होती है।
भाजपा VS इंडिया दल →
केन्द्र सरकार ने 2014 में कन्याकुमारी में घोषणा की थी कि वो कच्चातिवु द्वीप को पुनः प्राप्त करेगी।
2024 में हो रहे लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु में एक बार फिर से यह मामला उठ खड़ा हुआ।
विपक्ष में भारत (नया दल) ने घोषणा किया कि वो केंद्र में नई सरकार लाने के बाद इस मामले को सुलझा देगें।
कच्चातिवु वास्तव में है किसका ?
इंदिरा गांधी (प्रधानमंत्री)
1974 में तत्कालीन PM इंदिरा गांधी ने भंडारनायके से 1974-76 के मध्य 4 समुद्री सीमा समझौते की।
इसी समझौते में कच्चातिवु श्रीलंका को सौंप दिया गया।
सिरिमावो भंडारनायके (प्रधानमंत्री)
इनके और इंदिरा गांधी के मध्य काफी समानता थी इन्होंने इंदिरा की तरह ही श्रीलंका में आपातकाल लगाया था। इनके बेटे अनुरा की छवि इंदिरा के बेटे संजय गांधी जैसी थी।
वर्ष 1974 में 26 जून को कोलंबो और 28 जून को दिल्ली में बैठक के दौरान इस द्वीप के बारे में बात-चीत हुई और कुछ शर्तों के साथ इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया।
शर्त यह थी कि →
भारतीय मछुआरे अपना जाल सुखाने एवं
आराम करने हेतु इस द्वीप का इस्तेमाल कर सकेंगे।
इस द्वीप पर बने चर्च में भारतीय लोग बिना वीजा के जा सकते हैं।
कच्चातिवु का इतिहास →
यह रामेश्वरम् से लगभग 30 किमी दूरी पर स्थित है। 17वीं सदी में मदुरै के राजा रामनद की जमींदारी के नियंत्रण में यह क्षेत्र आता था।
कुछ समय बाद यहाँ अंग्रेजों ने एक चर्च का निर्माण कराया।
मद्रास प्रेसीडेंसी की स्थापना के दौरान यह क्षेत्र अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया।
असली विवाद 1921 में शुरु हुआ। भारत और सीलोन (श्रीलंका) दोनों ही स्थानों पर अंग्रेजों का नियंत्रण था। अंग्रेजों ने सर्वे कर इस द्वीप को श्रीलंका का हिस्सा बताया।
अन्ततः 1947 में सरकारी दस्तावेजों के हिसाब से इसे भारत का हिस्सा माना गया। ऐसे में दोनों देश इस क्षेत्र पर अपना नियंत्रण चाहते थे। अन्ततः 1974 में समुद्री सीमा रेखा विवाद सुलझाने के लिए हुई बैठक में इसे इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को सौंप दिया।
1974 के बाद कच्चातिवु की स्थिति →
1991 में तमिलनाडु की विधानसभा ने इसे भारत में मिलाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया।
दूसरी तरफ श्रीलंका में गृह युद्ध छिड़ा हुआ था श्रीलंकाई सेना इस वक्त लिट्टे से युद्ध करने में लगी पड़ी थी। इसलिए कच्चातिवु पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।
मछुआरे भी पहले की भाँति इस इलाके में मछली पकड़ने जाते रहे। इसके आस-पास अत्यधिक मात्रा में झिंगा मछलियाँ पाई जाती हैं।
1991 में तमिलनाडु की विधानसभा ने इसे भारत में मिलाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया।
दूसरी तरफ श्रीलंका में गृह युद्ध छिड़ा हुआ था श्रीलंकाई सेना इस वक्त लिट्टे से युद्ध करने में लगी पड़ी थी। इसलिए कच्चातिवु पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।
मछुआरे भी पहले की भाँति इस इलाके में मछली पकड़ने जाते रहे। इसके आस-पास अत्यधिक मात्रा में झिंगा मछलियाँ पाई जाती हैं।
2015 में इस मामले में श्रीलंका के तत्कालीन प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने एक बयान दिया कि “अगर भारतीय मछुआरे इस इलाके में आएंगे तो उन्हें गोली मार दी जाएगी।”
पिछले 20 वर्षों में 6184 भारतीय मछुआरों को श्रीलंका द्वारा हिरासत में लिया गया है।