बिहार में मूर्तिकला
- बिहार की मूर्तिकला यहां के इतिहास का वर्णन करने वाली कला के रूप में देखी जाती है।
- दीदारगंज (पटना) से प्राप्त स्त्री मूर्ति, बुद्ध की ताम्रमूर्ति और मृण्मयी जी मूर्तियां यहां की मूर्ति कला का बेजोड़ नमूना प्रस्तुत करती है।
बुद्ध की ताम्रमूर्ति
- 75 फीट ऊंचाई वाली इस मूर्ति को गुप्त काल की एक श्रेष्ठ रचना माना जाता है।
- यहां भागलपुर के सुल्तानगंज से मिली थी और फिलहाल इंग्लैंड के बर्मिघम के एक संग्रहालय में रखी हुई है।
दीदारगंज से प्राप्त स्त्री मूर्ति
- इसे मौर्य काल की श्रेष्ठ मूर्ति माना जाता है।
- 5 फीट ऊंचाई वाली है मूर्ति एक स्त्री (यक्षी) की है और इस पर विशेष प्रकार की चमक है।
- मूर्ति के दाहिने हाथ में चवंर है।
- इसकी केसराशि गुंथी हुई है तथा इसकी कलाई में चूड़ियां और गले में मुक्ताहार है।
- इस मूर्ति को पटना के दीदारगंज से प्राप्त किया गया है।
मृण्मयी मूर्तियां
- गुप्तकालीन नारी सौंदर्य की प्रतीक इन मूर्तियों के निर्माण के दौरान शांति का उपयोग किया जाता था।
- बौद्ध और पौराणिक देवी देवताओं की मूर्तियों का सौंदर्य अप्रीतम माना जाता है।
प्राचीनकालीन मूर्तिकला
- शुंग और कुषाण काल में, कला का विकास जारी रहा, मगर इससे काल के नमूनों से मौर्यकालीन कलात्मक गुणवत्ता नहीं प्रकट होती और इनकी संख्या भी बहुत कम है।
- गुप्तकाल में पुन: वास्तुकला और मूर्तिकला का विकास बड़े पैमाने पर हुआ है।
- इसकी प्रेरणा सारनाथ के क्षेत्र में विकसित और मथुरा कला से प्रभावित शैल से प्राप्त हुई थी।
गुप्तकालीन मूर्तिकला के नमूने
- रोहतास, भोजपुरी, लाल, राजगीर, गया, वैशाली, सुलतानगंज पटना आदि स्थानों से प्राप्त हुए हैं।
- बौद्ध धर्म की तुलना में हिंदू धर्म का प्रभाव इनमें अधिक झलकता है।
- गुप्तकाल में कई मंदिरों का भी निर्माण हुआ है।
- नालंदा का विद्या केंद्र और इससे संबंधित कुछ अवशेष गुप्तकालीन स्थापत्य कला के सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
- यह परंपरा गुप्तोत्तर काल में भी बनी रही।
पाल युग
- में पत्थर और कांसे की मूर्तियां के निर्माण की एक उन्नत शैली का विकास बिहार में हुआ जिसका प्रसार बंगाल में भी देखा जा सकता है।
- जहाँ से प्रतिमाओं के निर्माण की इस शैली में निर्णायक देन धीमन और उसके पुत्र विठपाल की रही है।
- यह नालंदा के निवासी थे और 9वीं शताब्दी ई. के दो महान पाल शासकों धर्मपाल और नेपाल के समकालीन थे।
- नालंदा में मंदिर स्थल संख्या 13 से प्राप्त अवशेष धातु को गलाने और उसे सांचों ढालने के प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।
- पालकालीन कांस्य से प्रतिमाएं सांचे में ही ढली, जिसके अनेक नमूने नालंदा और कुकरीहार (गया के समीप) से प्राप्त हुए हैं।
- नालंदा से प्राप्त नमूने मुख्यतः देवपाल के समय के जबकि कुर्किहार से प्राप्त मूर्तियां परवर्ती काल की है।
- दोनों की शैली वस्तुतः एक समान है।
- इनके अतिरिक्त फतेहपुर, अतिचक, आदि से भी ऐसी मूर्तियां, कांसे के बने हुए स्तूपों के नमूने और कुछ बर्तन भी पाए गए हैं।
- इन मूर्तियों में अधिकतर बौद्ध धर्म से प्रभावित हैं।
- बुद्ध, बोधिस्तव, अवलोकितेश्वर, मंजूश्री, तारा, जमला, आदि को इन मूर्तियों में दर्शाया गया है।
- हिंदू धर्म के देवी-देवताओं में मुख्यतः विष्णु, बलराम, सूर्य, उमा महेश्वर और गणेश की मूर्तियां देखी जा सकती है।
- पाली युग में पत्थर की मूर्तियां भी कलात्मक सुंदरता का उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करती है।
- यह मूर्तियां काले बेसाल्ट पत्थर की बनी है, जो संथाल परगना (अब झारखंड में) और मुंगेर जिला की पहाड़ियों से प्राप्त किए गए हैं।
- इन मूर्तियों में भी मुख्यतः देवताओं का ही चित्रण किया गया है, दिन में प्रधानता बुद्ध मूर्तियों की है।
- इसके बाद विष्णु की मूर्तियां है।
- शैव मत और जैन धर्म का प्रभाव बहुत सीमित रहा है, और इन से संबंध मूर्तियां यदा-कदा ही देखी जा सकती है।
- सभी मूर्तियां अत्यंत सुंदर है और कला की परिपक्वता को दर्शाती है।
- अलंकार की प्रधानता इन्हें भी आकर्षक बनाती है।
- पाल युगीन अधिकांश मूर्तियों में गौतम बुद्ध के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को दिखाया गया है जैसे उसका जन्म, ज्ञान की प्राप्ति, प्रथम धर्म उपदेश की प्रस्तुति, निर्वाण आदि।
- पाल काल में सुंदर और कलात्मक मृदभांड भी देखे जा सकते हैं।
- इनके कुछ उल्लेखनीय उदाहरण भागलपुर के समीप अन्तिचक विक्रमशिला महाविहार के अवशेषों से प्राप्त हुए हैं।
- ऐसी मूर्तियां दीवारों पर सजावट के लिए भी बनाई जाती है।
- इन मूर्तियों में धार्मिक और सामान्य जीवन के दृश्य देखे जा सकते हैं।
- लोगों के रहन सहन, खान पान, वेश-भूषा, क्रिया-कलाप, क्रीडा एवं मनोरंजन, सुख दुख, रीति रिवाज और संस्कार आदि की झलक देखी जा सकती है।
- इन कलाकृतियों में धार्मिक प्रभाव स्पष्ट है।
- बुद्ध, बोधिसत्व, पराध की प्रस्तुति बौद्ध धर्म तथा विष्णु, आदि वाराहा, सूर्य और हनुमान की प्रस्तुति हिंदू धर्म के प्रभाव को स्पष्ट करती है।
- इस युग की कलात्मकता का एक उत्कृष्ट उदाहरण एक तख्ती है, जिस पर एक स्त्री को बैठी हुई मुद्रा में दिखाया गया है।
- दाहिने पैर बाएं पैर पर रखा है, और शरीर झुका हुआ है।
- एक हाथ में आईना लिए वह अपने रूप को निहार रही है और दूसरे हाथ की उंगलियों से अपनी मांग में सिंदूर भर रही है।