गोंडवाना चट्टान से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य -
- गोंडवाना क्रम की चट्टानें मुख्य रूप से नदी घाटियों में पाई जाती हैं।
- दामोदर नदी की घाटी में गोंडवाना चट्टान पाई जाती है। (झारखंड)
- छत्तीसगढ़ एवं उड़ीसा में बहने वाली महानदी की घाटी में गोंडवाना चट्टान पाई जाती है।
- गोदावरी नदी की घाटी में गोंडवाना चट्टान पाई जाती है।
- तलछट कोयला क्षेत्र - उड़ीसा महानदी की घाटी में
- सिंगरोली कोयला क्षेत्र - आंध्र प्रदेश गोदावरी नदी की घाटी में
- झरिया कोयला क्षेत्र - झारखंड दामोदर नदी की घाटी
- सबसे उच्चकोटि का कोयला - एन्थ्रासाइट
- भारत के नदी घाटियों में बिटुमिनस कोयला पाया जाता है जो द्वितीयक कोटि का कोयला होता है।
- भारत का 98% कोयला गोंडवाना क्रम की चट्टानों में पाया जाता है इसका अर्थ है कि भारत में कोयला दामोदर नदी की घाटी में महानदी की घाटी में तथा गोदावरी नदी की घाटी में पाया जाता है।
धारवाड़ क्रम की चट्टान से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य -
- धारवाड़ क्रम की चट्टानों का नामकरण कर्नाटक के धारवाड़ जिले के नाम पर हुआ क्योंकि इस चट्टान की खोज सबसे पहले यही हुई थी।
- कर्नाटक और अरावली क्षेत्र में धारवाडिय चट्टानें पाई जाती हैं।
- सर्वाधिक समृद्ध चट्टानों की आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण भारत के समक्ष प्रमुख धातुएं लोहा, सोना, मैग्नीज, तांबा, जस्ता, टंगस्टन, क्रोमियम यहां से प्राप्त किया जाता है।
- सोना कर्नाटक में कोलार एवं हट्टी के खानों में प्राप्त किया जाता है।
- धारवाड़ संरचना से ही भारत का प्राचीनतम वलित पर्वत अरावली की उत्पत्ति हुई।
- धारवाड़ संरचना मुख्यतः धात्विक खनिज के लिए महत्वपूर्ण है।
- यहां भारत के सर्वाधिक धात्विक खनिजों के भंडार पाए जाते हैं जो भारत के खनन उद्योगों तथा कई आधारभूत उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण है।
- यहां लोहा मैंगनीज तांबा कोमाइट सोना जैसे महत्वपूर्ण खनिज के भंडार है।
- झारखंड एवं उड़ीसा की सीमा पर लौह युक्त पहाड़ियां पाई जाती है.
विंध्यन क्रम की चट्टान से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य -
- विंध्य पर्वत के आसपास के क्षेत्र में भवन निर्माण सामग्री के लिए प्रसिद्ध चूना पत्थर, बलुआ पत्थर, संगमरमर प्रसिद्ध है।
- मध्यप्रदेश में पन्ना की खान तथा आंध्र प्रदेश में गोलकुंडा की खान यहां से हीरा निकलता है।
- यह संरचना अधात्विक खनिज के लिए प्रमुख है।
- इसमें भारत के सर्वाधिक अधात्विक खनिज पाए जाते हैं।
- इसमें चूना पत्थर, बलुआ पत्थर, संगमरमर, एल्बेस्टस, अग्नि सह मिट्टी, चाइना क्ले, हीरा पन्ना जैसी खनिज मिलती है।
- चुना पत्थर सीमेंट उद्योग का प्रमुख कच्चा माल है। यहां भवन निर्माण संबंधी कई प्रकार के खनिज पाए जाते हैं.
कुंडप्पा क्रम की चट्टान से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य -
- कुंडप्पा क्रम के चट्टानों का नामकरण आंध्र प्रदेश के कुडप्पा जिला के नाम पर हुआ है क्योंकि इस चट्टान की खोज सबसे पहले यही हुई थी। प्रमुख क्षेत्र आंध्र प्रदेश में ही स्थित है।
आर्कियन क्रम की चट्टानें से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य -
- पृथ्वी के ठंडा होने के बाद सबसे पहले आरपीएन क्रम की चट्टानें बनी।
- सबसे प्राचीन चट्टान समूह आग्नेय शैलों द्वारा निर्मित हुए।
- यह भारत की प्रारंभिक शैल संरचना है। इसमें मुख्यतः आग्नेय एवं आग्नेय रूपांतरित चट्टानें पाई जाती हैं। इनमें ग्रेनाइट नीस, सिस्ट प्रमुख है।
- इन चट्टानों का निर्माण पृथ्वी की उत्पत्ति के साथ ही ज्वालामुखी क्रिया के फलस्वरूप हुई है। यह भारत एवं पृथ्वी की आधारभूत संरचना है।
- इन चट्टानों से ही रूपांतरण एवं अवसादी करण की प्रक्रिया द्वारा अन्य संरचना विकास हुआ है।
- प्रायद्वीपीय पठार से लेकर हिमालय प्रदेश तक आधारभूत चट्टान के रूप में आर्कियन संरचना पाई जाती है।
- इस संरचना में ही भारत के परमाण्विक खनिज यूरेनियम थोरियम आदि पाए जाते हैं, जो भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम और परमाणु सामरिक शक्ति का आधार है।
दक्कन ट्रैप से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य -
- महाद्वीप हमेशा टूटते और जुटते रहते है। प्रायद्वीपीय भारत और अफ्रीका गोंडवानालैंड का भाग है तथा प्रायद्वीपीय भारत अफ्रीका का भाग है जो अफ्रीका से टूटकर उत्तर पूर्व दिशा की ओर प्रवाहित हो रहा है।
- जब प्रायद्वीपीय भारत अफ्रीका से टूटकर अलग हुआ तो लावा का प्रवास शांत रूप में हुआ था। वह आस-पास के क्षेत्रों में फैल गया तथा ठंडा होने के पश्चात दक्कन ट्रैप का निर्माण हुआ। ( दक्कन पठार)
- लावा के जमाव से बनी चट्टान को बेसाल्ट चट्टान कहते हैं अथार्त दक्कन का पठार एक बेसाल्ट चट्टान है।
- दक्कन पठार का मुख्य हिस्सा महाराष्ट्र में है - 75-80% (महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश राज्य में विस्तार)
- लावा पठार के टूटने फूटने से बनी मिट्टी को काली मिट्टी कहा जाता है।
- कपास की खेती के लिए - लावा मिट्टी, कपासी मिट्टी, रेगुर मिट्टी उपयोगी है।
टर्शियरी संरचना से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य -
- टर्शियरी संरचना का निर्माण सियेनोजोइक महाकल्प के विभिन्न युग में अवसादी करण एवं रूपांतरण की प्रक्रिया से हुई है।
- यह मुख्यतः हिमालय के संरचना के लिए जाना जाता है।
- हिमालय की उत्पत्ति सियेनोजोइक महाकल्प में भी कई क्रमिक स्थानों के फलस्वरूप हुई है।
- टर्शियरी संरचना का विस्तार हिमालय क्षेत्र से लेकर अंडमान एवं निकोबार एवं भारत के तटवर्ती समुद्री क्षेत्र में है।
- इस संरचना में ही भारत के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के भंडार है।
- इसके अतिरिक्त टर्शियरी संरचना के हिमालय क्षेत्र में चुनाव पत्थर के भंडार हैं।
क्वार्टनरी संरचना से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य -
- प्लिस्टोसिन से होलोसिन काल तक क्वार्टनरी संरचना का विकास हुआ।
- यह मुख्यतः जलोढ़ निर्मित संरचना है, जिसकी उत्पत्ति नदियों द्वारा लाए गए जलोढ़को के निक्षेप से हुआ है।
- भारत के मध्यवर्ती मैदान तथा तटवर्ती मैदान में जलोढ़ संरचना का विकास हुआ।
- यह भारत के कृषि का प्रमुख आधार है और जलोढ़ मृदा भारत की सर्वाधिक उर्वर मिट्टी है।