सन्देह
उत्प्रेक्षा
भ्रांतिमान
असंगति
"जानि श्याम घनश्याम को नाचि उठे वन मोर।" अर्थात् घनश्याम (बादल) को श्याम जानकर जंगल में मोर नाचने लगते थे। इस पंक्ति में 'भ्रांतिमान अलंकार' है। सादृश्य के कारण एक वस्तु को दूसरी वस्तु मान लेना 'भ्रांतिमान अलंकार' कहलाता है।
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