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कश्मीरी केसर - कश्मीरी केसर का सुगंधित मसाले के रूप में उपयोग किया जाता है, साथ ही इसमें औषधीय गुण होते हैं। कश्मीरी केसर की खेती कश्मीर के कुछ क्षेत्रों; जिनमें पुलवामा, बडगाम, किश्तवाड़ और श्रीनगर शामिल हैं, में की जाती है। यह दुनिया का एकमात्र ऐसा केसर है जिसकी खेती समुद्र तल से 1,600 से 1,800 मीटर की ऊँचाई पर खेती की जाती है। विश्व में कश्मीरी केसर ही एक मात्र ऐसा केसर है जिसे इतनी ऊँचाई पर उगाया जाता है। केसर की खेती विशेष प्रकार की ‘करेवा’ मिट्टी में की जाती है। कश्मीरी केसर तीन प्रकार का होता है; लच्छा केसर, मोंगरा केसर तथा गुच्छी केसर। ईरान केसर का सबसे बड़ा उत्पादक है और भारत केसर उत्पाद में ईरान का करीबी प्रतियोगी है। GI टैग मिलने से कश्मीरी केसर को निर्यात बाज़ार में मदद मिलेगी। कदलाई मितई एक मूंगफली की कैंडी है जो तमिलनाडु के दक्षिणी भागों में बनाई जाती है। चाक-हाओ एक सुगंधित चिपचिपा चावल है जिसकी मणिपुर में सदियों से खेती की जा रही है। गोरखपुर का टेराकोटा कार्य सदियों पुरानी कला है जिसमें जहाँ स्थानीय कारीगरों द्वारा विभिन्न जानवरों जैसे कि घोड़े, हाथी, ऊँट, बकरी, बैल आदि की मिट्टी की आकृतियाँ बनाई जाती हैं।
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