पॉलीग्राफ और नार्को परीक्षण के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये - 1. हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि हाथरस दुष्कर्म मामले की जाँच के तहत पॉलीग्राफ और नार्को परीक्षण किये जाएंगे। 2. यह परीक्षण इस धारणा पर आधारित है कि जब कोई व्यक्ति झूठ बोलता है तो उसकी मानसिक प्रतिक्रियाएँ किसी सामान्य स्थिति में उत्पन्न होने वाली मानसिक प्रतिक्रियाओं से अलग होती हैं। 3. इस परीक्षण के दौरान किसी व्यक्ति के रक्तचाप, स्पंदन, श्वसन, पसीने की ग्रंथि में परिवर्तन और रक्त प्रवाह को मापा जाता है। 4. इस परीक्षण में व्यक्ति को नशीली दवाओं का इंजेक्शन दिया जाता है, जिससे वह व्यक्ति कृत्रिम निद्रावस्था या बेहोश अवस्था में पहुँच जाता है। उपरोक्त कथनों में से कौन सा सही है ?

  • 1

    1 और 3

  • 2

    2 और 4

  • 3

    1, 2 और 4

  • 4

    1, 2, 3 और 4

Answer:- 2
Explanation:-

उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता ने हाल ही में स्पष्ट तौर पर कहा है कि हाथरस दुष्कर्म मामले की जाँच के तहत पॉलीग्राफ और नार्को परीक्षण किये जाएंगे। पॉलीग्राफ परीक्षण → इसका पहला परीक्षण 19वीं सदी में इतालवी क्रिमिनोलॉजिस्ट सेसारे लोंब्रोसो द्वारा किया गया था, जिन्होंने पूछताछ के दौरान आपराधिक संदिग्धों के रक्तचाप में बदलाव को मापने के लिये एक मशीन का इस्तेमाल किया था। पॉलीग्राफ परीक्षण इस धारणा पर आधारित है कि जब कोई व्यक्ति झूठ बोलता है तो उस स्थिति में उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाएँ किसी सामान्य स्थिति में उत्पन्न होने वाली शारीरिक प्रतिक्रियाओं से अलग होती हैं। इस प्रक्रिया के दौरान कार्डियो-कफ या सेंसिटिव इलेक्ट्रोड जैसे अत्याधुनिक उपकरण व्यक्ति के शरीर से जोड़े जाते हैं और इनके माध्यम से रक्तचाप, स्पंदन, श्वसन, पसीने की ग्रंथि में परिवर्तन और रक्त प्रवाह आदि को मापा जाता है। साथ ही इस दौरान उनसे प्रश्न भी पूछे जाते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान व्यक्ति की प्रत्येक शारीरिक प्रतिक्रिया को कुछ संख्यात्मक मूल्य दिया जाता है, ताकि आकलन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि वह व्यक्ति सच कह रहा है अथवा झूठ बोल रहा है। नार्को परीक्षण → पॉलीग्राफ परीक्षण के विपरीत नार्को परीक्षण में व्यक्ति को सोडियम पेंटोथल (Sodium Pentothal) जैसी दवाओं का इंजेक्शन दिया जाता है, जिससे वह व्यक्ति कृत्रिम निद्रावस्था या बेहोश अवस्था में पहुँच जाता है। इस दौरान जिस व्यक्ति पर यह परीक्षण किया जाता है उसकी कल्पनाशक्ति तटस्थ अथवा बेअसर हो जाती है और उससे सही सूचना प्राप्त करने या जानकारी के सही होने की उम्मीद की जाती है। नोट → हालाँकि इन दोनों ही विधियों में वैज्ञानिक रूप से 100 प्रतिशत सफलता दर प्राप्त नहीं हुई है और चिकित्सा क्षेत्र में भी ये विधियाँ विवादास्पद बनी हुई हैं।

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