हाल ही में चर्चा में रहा चुनावी बॉण्ड क्या है -

  • 1

    सामान्य प्रत्याशी द्वारा भरा गया बॉण्ड

  • 2

    जेल से चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी द्वारा भरा गया बॉण्ड

  • 3

    राजनीतिक दलों को दान देना

  • 4

    हारे हुये प्रत्याशी की जमानत जब्त हुई राशि

Answer:- 3
Explanation:-

चुनावी बॉन्ड से मतलब एक ऐसे बॉण्ड से होता है जिसके ऊपर एक करेंसी नोट की तरह उसकी वैल्यू या मूल्य लिखा होता है। यह बॉण्ड; व्यक्तियों, संस्थाओं और संगठनों द्वारा राजनीतिक दलों को पैसा दान करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। वर्ष 2017 के बजट से पहले यह नियम था कि यदि किसी राजनीतिक पार्टी को 20 हजार रुपये से कम का चंदा मिलता है तो उसे चंदे का स्रोत बताने की जरुरत नही थी। इसी का फायदा उठाकर अधिकतर राजनीतिक दल कहते थे कि उन्हें जो भी चंदा मिला है वह 20 हजार रुपये प्रति व्यक्ति से कम है इसलिए उन्हें इसका स्रोत बताने की जरुरत नही है। इस व्यवस्था के चलते देश में काला धन पैदा होता था और चुनाव में इस धन का इस्तेमाल कर चुनाव जीत लिया जाता था। कुछ राजनीतिक दलों ने तो यह दिखाया कि उन्हें 80-90 प्रतिशत चंदा 20 हजार रुपये से कम राशि के फुटकर दान के जरिये ही मिला था। चुनाव आयोग की सिफारिश के आधार पर 2017 के बजट सत्र में सरकार ने गुमनाम नकद दान की सीमा को घटाकर 2000 रुपये कर दिया था। अर्थात 2000 रुपये से अधिक का चंदा लेने पर राजनीतिक पार्टी को यह बताना होगा कि उसे किस स्रोत से चंदा मिला है। विधानसभाओं के चुनाव के दौरान तमिलनाडु, पुद्दुचेरी, पश्चिम बंगाल, असम और केरल में 695.34 करोड़ रुपए के चुनावी बॉण्ड बेचे गए। वर्ष 2018 में योजना शुरू होने के बाद से किसी भी विधानसभा चुनाव में चुनावी बॉण्ड से प्राप्त यह राशि सबसे अधिक थी। चुनावी बॉण्ड राजनीतिक दलों को दान देने हेतु एक वित्तीय साधन है। चुनावी बॉण्ड बिना किसी अधिकतम सीमा के 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किये जाते हैं। भारतीय स्टेट बैंक इन बॉण्डों को जारी करने और भुनाने (Encash) के लिये अधिकृत बैंक है, ये बॉण्ड जारी करने की तारीख से पंद्रह दिनों तक वैध रहते हैं। केवल वे राजनीतिक दल ही चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के योग्य हैं जो जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29(A) के तहत पंजीकृत हैं और जिन्होंने बीते आम चुनाव में कम-से-कम 1% मत प्राप्त किया है। बॉण्ड किसी भी व्यक्ति (जो भारत का नागरिक है) द्वारा जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि हेतु खरीद के लिये उपलब्ध होते हैं, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया गया है। एक व्यक्ति या तो अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से बॉण्ड खरीद सकता है। बॉण्ड पर दाता के नाम का उल्लेख नहीं किया जाता है। इसमें दो प्रमुख समस्याएँ हैं → 1. पारदर्शिता की कमी, क्योंकि जनता को यह नहीं पता कि कौन किसको क्या दे रहा है और बदले में उन्हें क्या मिल रहा है ? 2. मंत्रालयों के माध्यम से केवल सरकार के पास ही इसकी जानकारी रहती है।

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