पाश्चात्य संस्कृति को हृदय से अपनाता है
सत्संग में अधिक समय नहीं बिताता
धार्मिक वातावरण में जीवन बिताता है
भारतीय संस्कृतिमय जवन बिताता है
उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार, आज जो व्यक्ति पुरातन संस्कारी विद्यार्थी, संध्यावंदन, या शिखा-सूत्र रखकर भारतीय संस्कृतिमय जीवन व्यतीत करता है, तो अन्य छात्र उसे बुद्ध या अप्रगतिशील कहकर उसका मजाक उड़ाते हैं। आज हम अपने भारतीय आदर्शों का परित्याग करके पश्चिम के अंधानुकरण को प्रगति मान बैठे हैं।
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