राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए चरित्र निर्माण परम आवश्यक है। जिस प्रकार वर्तमान में भौतिक निर्माण का कार्य अनेक योजनाओं के माध्यम से तीव्र गति के साथ सम्पन्न हो रहा है, वैसे ही वर्तमान की सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि देशवासियों के चरित्र निर्माण के लिए भी प्रयत्न किया जाए। उत्तम चरित्रवान व्यक्ति ही राष्ट्र की सर्वोच्च संपदा है। जनतंत्र के लिए तो यह एक महान कल्याणकारी योजना है। जन-समाज में राष्ट्र, संस्कृति, समाज एवं परिवार के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है इसका पूर्ण रूप से बोध कराना एवं राष्ट्र में व्याप्त समग्र भ्रष्टाचार के प्रति निषेधात्मक वातावरण का निर्माण करना ही चरित्र निर्माण का प्रथम सोपान है।
    पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति के प्रभाव से आज हमारे मस्तिष्क में भारतीयता के प्रति 'हीन भावना' उत्पन्न हो गई है। चरित्र निर्माण, जो कि बाल्यावस्था से ही ऋषिकुल, गुरुकुल,  चार्यकुल की शिक्षा के द्वारा प्राचीन समय से किया जाता था, आज की लॉर्ड मेकाले की शिक्षा पद्धति से संचालित स्कूलों एवं कॉलेजों के लिए एक हास्यास्पद विषय बन गया है। आज यदि कोई पुरातन संस्कारी विद्यार्थी संध्यावंदन या शिखा-सूत्र रख कर भारतीय संस्कृतिमय जीवन बिताता है, तो अन्य छात्र उसे 'बुद्ध' या अप्रगतिशील कहकर उसका मजाक उड़ाते हैं। आज हम अपने भारतीय आदर्शों का परित्याग करके पश्चिम के अंधानुकरण को ही प्रगति मान बैठे हैं। इसका घातक परिणाम चारित्र्य-दोष के रूप में आज देश में सर्वत्र दृष्टिगोचर हो रहा है। भारतीयता के प्रति हीन भावना का कारण है -

  • 1

    पुरातन संस्कारी संस्कृतिमय जीवन

  • 2

    लॉर्ड मेकाले की शिक्षा पद्धति

  • 3

    प्राचीन गुरुकुल की शिक्षा पद्धति

  • 4

    वर्तमान वैज्ञानिक शिक्षा पद्धति

Answer:- 2
Explanation:-

भारतीयता के प्रति हीनता के भाव का कारण लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति है। पाश्चात् शिक्षा और संस्कृति का प्रभाव आज हमारे मस्तिष्क पर इस प्रकार छा गया है कि ऋषिकुल, गुरुकुल तथा आचार्य की शिक्षा हमें पुरातन तथा अप्रगतिशील प्रतीत होती है तथा इसके प्रति हीन भावना उत्पन्न होती है।

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