सन्देह
भ्रान्तिमान
प्रतीप
नदर्शना
उपर्युक्त पंक्तियों में 'भ्रान्तिमान अलंकार' है। सदृश के कारण एक वस्तु को दूसरी वस्तु मान लेना भ्रांतिमान अलंकार है। जहाँ सत्य का ठीक से निश्चय न हने के कारण उपमेय का उपमान के रूप में वर्णन किया जाता है वहाँ सन्देश अलंकार होता है। जहाँ दो पदार्थों में भिन्नता होते हुए भी उपमान के द्वारा उनके सम्बन्ध की कल्पना की जाये वहाँ निदर्शना अलंकार होता है।
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