प्रशंसा की गई है।
खिल्ली उड़ाई गई है
स्तुति की गई है
उपासना की गई है।
दिये गये गद्यांश में ईर्ष्यालु व्यक्ति की 'खिल्ली उड़ाई गई है’ लेखक के विश्लेषणानुसार गद्य का सार है कि दिमाग की सकारात्मक ऊर्जा का प्रयोग सतत् उत्तम प्रयासों के सन्दर्भ में होना चाहिए, न कि ईर्ष्या के वशीभूत होकर नकारात्मकता का भण्डार बन जाने में। ईर्ष्या द्वेष के भाव सर्वप्रथम उसे ही अपना लक्ष्य बनाते हैं।
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