ईर्ष्या का काम जलाना है; मगर, सबसे पहले वह उसी को जलाती है जिसके हृदय में उसका जन्म होता है। आप भी ऐसे बहुत से लोगों को जानते होंगे जो ईर्ष्या और द्वेष की साकार मूर्ति हैं, जो बराबर इस फिक्र में लगे रहते हैं कि कहाँ सुनने वाले मिलें कि अपने दिल का गुबार निकालने का मौका मिले। श्रोता मिलते ही उनका ग्रामोफोन बजने लगता है और वे बड़े ही होशियारी के साथ एक-एक काण्ड इस ढंग से सुनाते हैं, मानों विश्व कल्याण को छोड़कर उनका और कोई ध्येय नहीं हो। मगर, जरा उनके अपने इतिहास को भी देखिए और समझने की कोशिश कीजिए कि जबसे उन्होंने इस सुकर्म का आरंभ किया है, तबसे वे अपने क्षेत्र में आगे बढ़े हैं या पीछे हटे है। यह भी कि अगर वे निंदा करने में समय और शक्ति का अपव्यय नहीं करते तो आज उनका स्थान कहाँ होता। गद्यांश में ईर्ष्यालु व्यक्तियों की -

  • 1

    प्रशंसा की गई है।

  • 2

    खिल्ली उड़ाई गई है

  • 3

    स्तुति की गई है

  • 4

    उपासना की गई है।

Answer:- 2
Explanation:-

दिये गये गद्यांश में ईर्ष्यालु व्यक्ति की 'खिल्ली उड़ाई गई है’ लेखक के विश्लेषणानुसार गद्य का सार है कि दिमाग की सकारात्मक ऊर्जा का प्रयोग सतत् उत्तम प्रयासों के सन्दर्भ में होना चाहिए, न कि ईर्ष्या के वशीभूत होकर नकारात्मकता का भण्डार बन जाने में। ईर्ष्या द्वेष के भाव सर्वप्रथम उसे ही अपना लक्ष्य बनाते हैं।

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