भक्तिकाल के कृष्णोपासक सूरदासजी ने सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, आदिका अनमोल खजाना हिन्दी साहित्य को दिया है। उनके पदों में वात्सल्य, श्रृंगार एवं शांत रस के भाव प्राप्त होते हैं। उनके लिए कहा गया है कि ‘सूर सर तुलसी ससी उडगन केशवदास’ वे अष्टछाप के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। उनके काव्य की विशेषता यह है वे गेय पद है। उनकी अधिकतर रचना, ब्रजभाषा में पायी जाती है कहीं - कहीं पर संस्कृत व फारसी भाषा के शब्द भी पाए जाते हैं। उनकी रचनाओं में अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि सभी अलंकार पाये जाते हैं। वे जन्मांध थे लेकिन उनके पदों में जो वर्णन पाया जाता है वह सजीव है। ऐसा लगता ही नहीं है कि वे जन्मांध थे। उनकी मृत्यु 1580 ईसवी में हुई थी। हिन्दी साहित्य जगत में वे सदैव अमर है। सूरदास जी कौन से काल के संतकवि है -

  • 1

    भक्तिकाल

  • 2

    आदिकाल

  • 3

    आधुनिक काल

  • 4

    रीतिकाल

Answer:- 1
Explanation:-

सूरदास जी भक्तिकाल के संत कवि है। आदिकाल के कवि - सरहपा, स्वयंभू, शालिभद्र सूरी, देवसेन आदि। भक्तिकाल के कवि - सूरदास, तुलसीदास, जायसी, मीराबाई, कबीरदास आदि। रीतिकाल के कवि - बिहारी, चिंतामणि, मतिराम, भूषण, देव आदि। आधुनिक काल के कवि - भारतेंदु हरिश्चन्द्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रा नन्दन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, महादेवी वर्मा आदि।

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