प्रेम की भाषा शब्द रहित है। नेत्रों की, कपोलों की मस्तक की भाषा भी शब्द-रहित है। जीवन का तत्व भी शब्द से परे है। सच्चा आचरण-प्रभाव, शील, अचल-स्थिति-संयुक्त आचरण-न तो साहित्य के लंबे व्याख्यानों से गठा जा सकता है न वेद की श्रुतियों के मीठे उपदेश से, न अंजील से, न कुरान से, न धर्मचर्चा से, न केवल सत्संग से। जीवन के अरण्य में घुसे हुए पुरूष के हृदय पर प्रकृति और मनुष्य के जीवन के मौन व्याख्यानों के यत्न से सुनार के छोटे हथौड़े की मंद-मंद चोटों की तरह आचरण का रूप प्रत्यक्ष होता है। प्रेम की भाषा है -

  • 1

    अर्थ - रहित

  • 2

    भाव - रहित

  • 3

    ज्ञान - रहित

  • 4

    शब्द - रहित

Answer:- 4
Explanation:-

गद्यांश के अनुसार प्रेम की भाषा - शब्द रहित है। यह नेत्र, कपोल आदि के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।

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