गद्यांश - प्राचीन काल में नारी का स्थान समाज में अग्रगण्य था। ऐसा कहा जाता था कि "जहाँ नारी की पूजा होती है, वहां देवताओं का निवास होता है। मध्य भारत के काल से नारी का पतन शुरू हुआ। मध्य काल तक तो नारी दासी या गुलान बन गई। चहारदीवारी में कैद हो गई किन्तु 19 वीं शताब्दी में राजा राम मोहन राय, स्वामी विवेकानन्द, दयानंद सरस्वती आदि समाज सुधारकों ने नारी जगत की काया पलट दी। नारी उत्थान की ओर बढ़ती गई। आज आधुनिक नारी ने जमीन से लेकर आसमान में अपना कब्जा जमाया है, नारी तू नारायणी उक्ति को सिद्ध कर दिया है। वास्तव में देखा जाए तो नर और नारी एक रथ के दो पहिये हैं। रथ को सुयोग्य ढंग से चलाने के लिए दोनों में संतुलन होना चाहिए। शिक्षित नारी परिवार की उद्धारक है। प्रत्येक घर में नारी का सम्मान होना चाहिए। समाज की प्रचलित कुप्रथाओं से लड़ना अनिवार्य हैं। नारी ने अपना स्थान जो प्राप्त किया है, उसे मजबूत बनाने केल लिए नर और नारी दोनों को तत्पर रहना चाहिए। "नारी तू नारायणी" की सही व्याख्या क्या है-

  • 1

    नारी नारायणी की तरह पूजनीय है

  • 2

    नारी का को कोई अधिकार नहीं

  • 3

    नारी गुलाम थी

  • 4

    नारी का मान सम्मान नहीं होना चाहिए।

Answer:- 1
Explanation:-

'नारी तू नारायणी' की सही व्याख्या है- नारी तू नारायणी (देवी) की तरह पूजनीय है।

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