शांत
श्रृंगार
करूण
हास्य
'मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई।' जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।' में श्रृंगार रस है। सांसारिक वस्तुओं तथा व्यक्तियों के प्रति वैराग्य की भावना से शांत रस की निष्पत्ति होती है जैसे- मोहन महल की प्रथम सीढ़ी या बिन ज्ञात चरित्र सम्यक्ता न लहै। किसी वस्तु या विकृति, वेशभूषा को देखकर मन (हृदय) में हास्य की भावना उत्पन्न होती है, जैसे - देखि सियहिं सुरतिय मुस्काती वर लायक दुलहिन जग नाहीं।।
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