वीर रस
वियोग श्रृंगार रस
शांत रस
संयोग श्रृंगार रस
'अखियाँ हरि दरसन की भूखी। कैसे रहें रूप रस राँची ए बतियाँ सुनि रूखीं' इसमें वियोग रस है क्योंकि इसमें हरि के दर्शन के लिए आँखे तरस रही है। 'सूरसागर' का यह पद्यांश गोपियों की विरह दशा का मार्मिक वर्णन है।
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