करूण रस
रौद्र रस
वीभत्स रस
अद्भुत रस
'जुगुप्सा' वीभत्स रस का स्थायी भाव है। जब किसी दृश्य को देखकर या यादकर मन में जुगुप्सा या घृणा के भाव की परिपक्वता पायी जाए तो वहाँ वीभत्स रस होता है जैसे- सिर पर बैठ्यो काग आँख दोऊ खात निकारत। खींचत जीभहिं स्यार अतिहि आनंद उर धारत।। गीध जांधि को खोदि-खोदि कै माँस उपारत। स्वान आंगुरिन काटि-काटि कै खात विदारत।।
Post your Comments