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रौद्र रस
शान्त रस
भयानक रस
अद्भुत रस
'केशव कहि न जाई का कहिये।' देखत तव रचना विचित्र अति समुझि मनहिं मन रहिये'। यहाँ काव्य में केशव (कृष्ण/रामईश्वर) के अद्भुत रूप का बोध होता है अत: इस काव्य में अद्भुत रस होगा।
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