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भक्ति
शान्त
वात्सल्य
श्रृंगार
जिस काव्य को पढ़कर या सुनकर मन में निर्वेद शांत भाव की प्रधानता आ जा ती है, वहां शांत रस होता है। इसका स्थायी भाव शम/निर्वेद (वैराग्य) होता है। भरत मुनि के 'नाट्यशास्त्र' में शांत रस का वर्णन नहीं मिलता हैं।
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