मनुष्य के जीवन में स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता दोनों का वास्तविक अर्थ एक ही माना जाता है। अवलंब का अर्थ है आश्रय या सहारा बनना, किसी दूसरे का बोझ बनकर या किसी पर निर्भर न होकर अर्थात् आश्रित न रहकर अपने-आप पर निर्भर या आश्रित रहना। इस तरह दोनों शब्द परावलंबन या पराश्रिता त्यागकर सब प्रकार के दुख-कष्ट सहकर भी अपने पैरों पर खड़े रहने की शिक्षा और प्रेरणा देने वाले शब्द हैं। मानव जगत में दूसरों पर आश्रित होना एक प्रकार का पाप है। व्यक्ति के अंतः बाह्य व्यक्तित्व को हीन या तुच्छ बना देने वाला हुआ करता हैं पराश्रित अवस्था में व्यक्ति आश्रयदाता के अधीन बन कर रहा जाता है। इशारों पर नाचने वाली कठपुतली बन कर रह जाता है। सर्वत्र बाध्यता और विवशता ही दिखाई देती है। 
    तनिक-सी अभिलाषा के लिए भी दूसरों का मुँह ताकना पड़ता है। मन मार कर जीवन व्यतीत करना पड़ता है। इसलिए स्वाधीनता एवं स्वावलंबन को स्वर्ग का द्वार एवं पुण्य- कार्यों का परिणाम और सर्वोच्च स्वीकार किया गया है।  मनुष्य के जीवन के लिए किसे स्वर्ग का द्वार कहा गया है -

  • 1

    परावलम्बन को

  • 2

    स्वधीनता को

  • 3

    स्वालम्बन को

  • 4

    2 और 3 दोनों

Answer:- 4

Post your Comments

Your comments will be displayed only after manual approval.

Test
Classes
E-Book