सूरदास
केशव
तुलसीदास
कबीर
कबीर ‘निर्गुण भक्ति धारा’ के ऐसे कवि थे जिन्होने संत होने के बाद भी पूर्णत: गृहस्थ जीवन का निर्वाह किया। इन्होंने जाति-प्रथा, धार्मिक कर्मकाण्ड, बाह्य आडम्बर, मूर्तिपूजा, जप-तप, अवतारवाद आदि का घोर विरोध करते हुए एकेश्वरवाद एवं निराकार ब्रह्म की उपासना को महत्व दिया।
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