“इस संसार में धन ही सब कुछ नहीं है। धन की पूजा तो बहुत कम जगहों में होती देखी गयी है। संसार का इतिहास उठाकर देखिए और उदाहरण ढूँढ-ढूँढ कर सामने रखिये तो आपको विदित हो
जायेगा कि जिनकी हम उपासना करते हैं, जिसके लिये हम आँखे बिछाने तक को तैयार रहते हैं, जिसकी स्मृति तरोताजा रखने के लिये हम अनेक तरह के स्मारक चिन्ह बनाकर खड़े करते हैं, उन्होंने रूपया कमाने में अपना समय नहीं बिताया था, बल्कि उन्हीं ने कुछ ऐसे काम किये थे, जिनकी महत्ता हम रूपये से अधिक मूल्यवान समझते हैं। जिन लोगों के जीवन का उद्देश्य केवल रूपया बटोरना है उनकी प्रतिष्ठा कम हुई है। अधिकांश अवस्थाओं में उन्हें किसी ने पूछा तक नहीं है। उन्होंने जन्म लिया, रुपया कमाया और परलोक की यात्रा की। किसी ने जाना तक नहीं कि वे कौन थे और कहाँ गये। मानव समाज स्वार्थी अवश्य है, पर वह स्वार्थ की उपासना करना नहीं जानता। अन्त में वे ही पूजे जाते हैं जिन्होंने अपने जीवन को अर्पित करते समय सच्चे मनुष्यत्व का परिचय दिया है।" उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार संसार में किस तरह के मनुष्य की पूजा होती है -

  • 1

    जो धनार्जन एवं त्याग दोनों करता है

  • 2

    जो पैसों का कल्याणकारी कार्यों में लगाता है

  • 3

    जो मानवता की सेवा में लगा रहता है

  • 4

    जो सच्चे मनुष्यत्व के लिए कार्य करता है।

Answer:- 4
Explanation:-

उपर्युक्त गद्यांश में लेखक धन को ही सब कुछ नहीं मानता है, धन की पूजा बहुत ही कम जगहों पर देखने को मिलती है, संसार का इतिहास उठाकर देखने पर विदित होता है कि अंत में उसी मनुष्य की पूजा होती है जो सच्चे मनुष्यत्व के लिए कार्य करता है।

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