धन से ज्यादा मानवता प्रबल है
धन कमाने वाला अधिक नाम नहीं कर पाता है
धन की पूजा व्यक्ति को स्वार्थी बनाती है
धन कमाने की अपेक्षा सच्चा मनुष्य होना ज्यादा अच्छा है।
गद्यांश की दूसरी पंक्ति - धन की की पूजा तो बहुत कम जगहों में होती देखी गयी है। एवं अंतिम पंक्ति - अन्त में वे ही पूजे जाते हैं, जिन्होने अपने जीवन को अर्पित करते समय सच्चे मनुष्यत्व का परिचय दिया है।
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