गद्यांश - शिक्षा को वैज्ञानिक और प्रविधिक मूलाधार देकर हमने जहाँ भौतिक परिवेश को पूर्णतया परिवर्तित कर दिया है और जीवन को अप्रत्याशित गतिशीलता दे दी है, वहाँ साहित्य, कला, धर्म और दर्शन को अपनी चेतना से बहिष्कृत कर मानव विकास को एकांगी बना दिया है। पिछली शताब्दी में विकास के सूत्र प्रकृति के हाथ से निकलकर मनुष्य के हाथ में पहुँच गए हैं, विज्ञान के हॉथ में पहुँच गए हैं और इस बंद गली में पहुँचने का अर्थ मानव जाति का नाश भी हो सकता है। इसलिए नैतिक और आत्मिक मूल्यों के साथ-साथ विकसित करने की आवश्यकता है, जिससे विज्ञान हमारे लिए भस्मासुर का हाथ न बन जाए। व्यक्ति की क्षुद्रता यदि राष्ट्र की क्षुद्रता बन जाती है, तो विज्ञान भस्मासुर बन जाता है। इस सत्य को प्रत्येक क्षण सामने रखकर ही अणु-विस्फोटक को मानव प्रेम और लोकहित की मर्यादा दे सकेंगे। अपरिसीम भौतिक शक्तियों का स्वामी मानव आज अपने व्यक्तित्व के प्रति आस्थावान नहीं है और प्रत्येक क्षण अपने अस्तित्व के संबंध में शंकाग्रस्त है। आज का मानव अपने व्यक्तित्व और अस्तित्व के प्रति इसलिए शंकालु है, क्योंकि

  • 1

    वह विज्ञान की विध्वंसक शक्तियों से भयभीत है

  • 2

    उसका आत्मविश्वास लुप्त होता जा रहा है

  • 3

    मानव ईश्वर के प्रति अस्थावान नहीं है

  • 4

    वह सीमित भौतिक शक्तियों को स्वामी है

Answer:- 1
Explanation:-

आज का मानव अपने व्यक्तित्व और अस्तित्व के प्रति इसलिए शंकालु है, क्योंकि वह विज्ञान की विध्वंसक शक्तियों से भयभीत है।

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