लेखन पद्धति
उपवास द्वारा प्राण-त्याग
तार्थंकरों की जीवनी
भित्ति चित्र
जैन धर्म में 'सल्लेखना' (संथारा) से तात्पर्य उपवास प्राण - त्याग से हैं। मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य अपने जीवन के अंतिम दोनों में जैन हो गया था। उसके शासन काल के अन्त में मगध में 12 वर्षों का अकाल पड़ा। अकाल की स्थिति से निपटने में असफल होकर चन्द्रगुप्त मौर्य अपने पुत्र के पक्ष में सिंहासन त्याग कर भद्रबाहु के साथ श्रवण बेलेगोला (मैसूर) में तपस्या करने चला गया। इसी स्थान पर उसने सल्लेखना विधि से अपने प्राण त्यागे।
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