रैम्जे मैक्डोनाल्ड
स्टैनले बाल्डविन
नेविल चैम्बरलेन
विंस्टन चर्चिल
अंग्रेजों की बांटो और राज करो की नीति का असली रूप तब सामने आया जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैक्डोनाल्ड ने 16 अगस्त 1932 को समाप्रदायिक निर्णय (कम्यूनल एवार्ड) प्रस्तुत किया। इसके तहत कानूनी रूप से दलित वर्ग को भी अल्पसंख्यक मानकर हिन्दुओं से अलग कर दिया गया। इसके तहत प्रत्येक अल्पसंख्यक मानकर हिन्दुओं से अलग कर दिया गया। इसके तहत प्रत्येक अल्पसंख्यक समुदाय के लिए विधान मण्डलों में कुछ सीटें सुरक्षित कर दी गई। जिनके सदस्यों का चुनाव पृथक निर्वाचक मण्डलों द्वारा किया जाना था। मुस्लमान, सिक्ख, और ईसाई पहले सी अल्पसंख्यक माने जा रहे थे। गाँधी जी उस समय यरवदा जेल में थे। उन्होंने इसके विरोध में आमरण अनशन कर दिया। मदन मोहन मालवीय, राजेन्द्र प्रसाद, पुरूषोत्तम दास और राजगोपालाचारी के प्रयासों से गाँधीजी और अम्बेडकर में पूना पैक्ट हुआ (24 सितम्बर, 1932) जिसके तहत पृथक निर्वाचक मण्डल (दलित) समाप्त कर दिया गया लेकिन प्रांतीय विधान मण्डलों में दलितों के लिए सुरक्षित सीटों की संख्या 71 से बढ़कर 148 कर दी गयी। केन्द्रीय विधानमण्डल में आरक्षित सीटों की संख्या में दलित वर्गों के लिए 18% बढ़ा दी गई।
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