दुनिया की हर एक चीज हमें शिक्षा देती है। एक दिन मैं धूप में घूम रहा था। चारों तरफ हरे-हरे वृक्ष दिखाई दे रहे थे। मैं सोचने लगा कि ऊपर से इतनी कड़ी धूप पड़ रही है, फिर भी ये वृक्ष हरे कैसे हैं? वे वृक्ष मेरे गुरु बन गए। मेरी समझ में आ गया कि जो वृक्ष ऊपर से इतने हरे भरे दिखते हैं, उनकी जड़ें जमीन में गहरी पहुँची हैं और वहाँ से इन्हें पानी मिल रहा है। इस तरह अन्दर से पानी और ऊपर से धूप, दोनों की कृपा से यह सुन्दर हरा रंग इन्हें मिल रहा है। इसी तरह हमें अन्दर से भक्ति का पानी और बाहर से तपश्चर्या की धूप मिले तो हम भी पेड़ों जैसे हरे भरे हो जाएँगे। हम ज्ञान की दृष्टि से परिश्रम को नहीं देखते, इसलिए उसमें तकलीफ मालूम होती है। हम भी पेड़ की तरह "हरे भरे हो जाएँगे" से लेखक का क्या तात्पर्य है -

  • 1

    हम भी धूप और पानी में खड़े हो सकते हैं।

  • 2

    हम भी पेड़ों की तरह मजबूत हो सकते हैं।

  • 3

    हमारी आयु लम्बी हो सकती है।

  • 4

    हम भी आनन्द और उल्लास पूर्ण जीवन जी सकते हैं।

Answer:- 4
Explanation:-

हम भी आनन्द और उल्लास पूर्ण जीवन जी सकते हैं।

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