भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (यह जम्मू-कश्मीर राज्य में पहले लागू नहीं था)
भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 करीब तीन दशक पुराना है।
इसे संशोधन के लिये 2013 में संसद में पेश किया गया था, लेकिन सहमति न बन पाने पर इसे स्थायी समिति और प्रवर समिति के पास भेजा गया। साथ ही समीक्षा के लिये इसे विधि आयोग के पास भी भेजा गया।
समिति ने 2016 में अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसके बाद 2017 में इसे दोबारा संसद में लाया गया। पारित होने के बाद इसे भ्रष्टाचार निरोधक संशोधन विधेयक-2018 कहा गया।
संशोधित विधेयक में रिश्वत देने वाले को भी इसके दायरे लाया गया है।
इसमें भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और ईमानदार कर्मचारियों को संरक्षण देने का प्रावधान है।
लोकसेवकों पर भ्रष्टाचार का मामला चलाने से पहले केंद्र के मामले में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तों से अनुमति लेनी होगी।
रिश्वत देने वाले को अपना पक्ष रखने के लिये 7 दिन का समय दिया जाएगा, जिसे 15 दिन तक बढ़ाया जा सकता है।
जाँच के दौरान यह भी देखा जाएगा कि रिश्वत किन परिस्थितियों में दी गई है।
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