गुण सन्धि
यण् सन्धि
दीर्घ सन्धि
व्यंजन सन्धि
‘कल्पांत’ में दीर्घ सन्धि है, इसका विच्छेद ‘कल्प + अंत’ होता है। जब ह्रस्व या दीर्घ ‘अ, इ, उ, ऋृ, लृ’ के बाद ह्रस्व अथवा दीर्घ ‘अ, इ, उ, ऋृ, लृ’ समान वर्ण आते हैं, तो दोनों के स्थान पर दीर्घ (आ, ई, ऊ, ऋृृ) आदेश हो जाता है। दीर्घ सन्धि को ‘सवर्ण दीर्घ’ सन्धि भी कहते हैं। Trick - अ/आ = आ, इ/ई = ई, उ/ऊ = ऊ, ऋृ/ऋृृ = ऋृृ जैसे - अ/आ + अ/आ = आ परम + आनंद = परमानंद परम + आवश्यक = परमावश्यक इ/ई + इ+ई = ई कवि + इच्छा = कवीच्छा अति + इव = अतीव उ/ऊ + उ/ऊ = ऊ लघु + ऊर्मि = लघूर्मि धातु + ऊष्मा = धातूष्मा ऋृ/ऋृृ + ऋृ/ऋृृ = ऋृृ मातृ + ऋृण = मातृृण पितृ + ऋृण = पितृृण
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