मामला भारतीय अदालत में दायर किया गया एक निर्वाह व्यय से सम्बन्धित मुकदमा था। इस मामले में 62 वर्षीय मुस्लिम महिला को उसके पति ने 1978 में तलाक दे दिया था। उसने अपने बच्चों के भरण-पोषण के लिए धन माँगा और उच्चतम न्यायालय में मुकदमा जीत भी लिया। परन्तु उसे निर्वाह व्यय नहीं दिया गया, क्योंकि उसी दरमियान देश के कानूनों में बदलाव कर दिये गये थे- UPSI Batch-3, 16 Dec 2017

  • 1

    शायरा बानो

  • 2

    शबनम हाशमी

  • 3

    शाह बानो

  • 4

    आयेशा बीबी

Answer:- 3
Explanation:-

 मोहम्मद अहमद खान बनाम शाहबानों के प्रकरण में शाहबानों के पति ने उन्हें तलाक दिया तब उनकी उम्र 60 वर्ष से ज्यादा हो चुकी थी। शाहबानो ने दंड प्रक्रिया संहिता (Cr. P.C.) की धारा 125 के अंतर्गत अपने पति से भरण-पोषण भत्ता दिए जाने की मांग की। न्यायालय ने शाहबानो के पक्ष में फैसला दिया। लेकिन उनके पति ने इस फैसले के खिलाफ अपील की और अंततः यह मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुँचा। शाहबानो के पक्ष में आए न्यायालय के फैसले का भारी विरोध हुआ। अन्तत: सरकार ने मुस्लिम धर्मगुरूओं के दबाव में आकर मुस्लिम महिला तलाक पर संरक्षण अधिनियम, 1986 पारित कर दिया। इस अधिनियम के जरिये शाहबानो के पक्ष में आया फैसला भी पलट दिया गया। लेकिन शाहबानो का नाम भारत के न्यायिक इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया। शाहबानो ने यह वाद 23 अप्रैल 1985 में जीत लिया था।

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