अपने शरीर के प्रति अपराध से प्रतिरक्षा
दूसरे के शरीर की प्रतिरक्षा
चोरी, लूट आदि अपराध से प्रतिरक्षा।
उपरोक्त सभी।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा (96-106) प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के सम्बन्ध में उबन्ध करती है तथा धारा-97 निम्न उपबन्ध करती है- 1. मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाली किसी अपराध के विरुद्ध न केवल अपने शरीर की बल्कि दूसरे (अन्य) व्यक्ति के शरीर की प्रतिरक्षा करे। 2. किसी ऐसे कार्य के विरुद्ध जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार की परिभाषा में आने वाला अपराध है या ऐसे अपराध का प्रयत्न (कोशिश) है तब न केवल अपने बल्कि किसी अन्य व्यक्ति की सम्पत्ति की प्रतिरक्षा करें।
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