विभाव
अनुभाव
स्थायी भाव
संचारी भाव
हिन्दी साहित्य के संचारी भाव को ‘व्यभिचारी भाव’ भी कहा जाता है, क्योंकि व्यभिचारी भाव प्रत्येक स्थायी भाव के साथ संचरण करते रहते हैं ये भाव किसी न किसी स्थायी भाव के साथ प्रकट होते रहते हैं। ये क्षणिक, अस्थायी और पराश्रित होते हैं।
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