नामधातु
द्विकर्मक क्रिया
प्रेरणार्थक
कृदंत
द्विकर्मक क्रिया ‘क्रिया’ के भेद है, जैसे - मैं बालक को रामायण पढ़ाता हूँ। यहाँ दो कर्म हैं - बालक को और रामायण। नामधातु क्रिया - बात से बतियाना, अपना से अपनाना, झूठ से झुठलाना। प्रेरणार्थक क्रियाएँ - गोविन्द ने राम को जगाया। प्रेरणार्थक रुप लेने पर धातु कभी-कभी परिवर्तित हो जाती है। कृदंत - रुपांतर के आधार पर कृदंत दो प्रकार के होते हैं - 1. विकारी 2. अविकारी
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