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वृद्धि
गुण
यण्
दीर्घ
‘राजेन्द्र’ शब्द में गुण सन्धि है, इसका विच्छेद राजा + इन्द्र है। दीर्घ - विस्मय + आदि = विस्मयादि, रेखा + अंश = रेखांश वृद्धि - महा + ओज = महौज, दिन + एक = दिनैक गुण - जल + ऊर्मि = जलोर्मि, महा + उर्ध्व = महोर्ध्व
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