हास्य रस
श्रृंगार रस
वीर रस
करुण रस
उपर्युक्त पंक्तियों में हास्य रस निहित है। तुलसीदास जी ने इस पद में वनवासी साधुओं के साथ कोमल परिहास करते हुए कहा है कि विंध्याचल पर रहने वाले उदास तपस्वी बिना स्त्री के अत्यधिक दुःखी जीवन बिता रहे हैं। जब उन्होंने गौतम की स्त्री अहिल्या के तर जाने की कथा सुनाई तो उन मुनियों को अत्यधिक सुख मिला, वे राम से कहने लगे कि आपने बड़ी कृपा की जो आप वन में चले आये। हे राम ! आपके सुन्दर चरण कमलों की स्पर्श पाकर यहाँ की सारी शिलायें चन्द्रमुखी स्त्रियाँ बन जायेंगी और तब हमार अकेलापन दूर हो जायेगा।
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