करुण रस
श्रृंगार रस
अद्भुत रस
वीभत्स रस
उपर्युक्त पंक्तियों में करुण रस है। इन पंक्तियों के माध्यम से सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ ने अपनी पुत्री ‘सरोज’ की मृत्यु के उपरान्त पूरी करुणा को उड़ेल दिया है। वीभत्स रस - “सिर पर बैठ्यो काग, आँख दोउ खात निकारत। खींचत जीभहिं स्यार, अतिहि आनंद उर धारत।।”
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