वीर रस
हास्य रस
रौद्र रस
करुण रस
उपर्युक्त पंक्तियों में वीर रस है। कहा जाता है कि राजा हरिश्चन्द्र ने सत्य के मार्ग पर चलने के लिए अपनी पत्नी और पुत्र के साथ खुद को बेंच दिया था। करुण रस - प्रिय मृत्यु का अप्रिय महासंवाद पाकर विष-भरा। चित्रस्थ-सी, निर्जीव-सी, हो रह गयी हत उत्तरा।।
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