भक्ति रस
वीर रस
हास्य रस
श्रृंगार रस
उपर्युक्त पंक्तियों में वीर रस है। इस पंक्ति के माध्यम से कवि कह रहे हैं कि जब राणा प्रताप युद्ध भूमि में तलवार उठाकर चेतक (घोड़ा) पर सवार होकर युद्ध करते थे तो ऐसा प्रतीत होता था मानो वह अपने अन्दर भूतल में स्थिर पानी अर्थात् असीम शौर्य को धारण कर रहे हों। वह ऐसा पराक्रमी वीर थे जो शत्रु सेना के सिर काट-काटकर अपनी जवानी का वास्तविक परिचय देते थे। भक्ति रस - “एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास। एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास।।” - तुलसीदास
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