भयानक रस
अद्भुत रस
हास्य रस
वीभत्स रस
उपर्युक्त पंक्तियों में भयानक रस का निरुपण हुआ है, क्योंकि इस पंक्तियों में अजगर और सिंह आलम्बन हैं। उन दोनों जीवों की भयानक आकृति तथा चेष्टाएँ उद्दीपन हैं। स्वेद, कम्प, रोमांच आदि संचारी भाव हैं और मूर्छा आदि अनुभाव हैं। इन सबसे भय स्थायी भाव पुष्ट होकर भयानक रस की प्रतीति करता है। यह परनिष्ठ भयानक रस का उदाहरण है। वीभत्स रस - “सिर पर बैठ्यो काग, आँख दोउ खात निकारत। खींचत जीभहिं स्यार, अतिहि आनंद उर धारत।।”
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