मन रे तन कागद का पुतला। लागै बूँद बिनसि जाय छिन में, गरब करे क्या इतना।। इन पंक्तियों में कौन-सा रस है -

  • 1

    भक्ति रस

  • 2

    श्रृंगार रस

  • 3

    करुण रस

  • 4

    शांत रस

Answer:- 4
Explanation:-

उपर्युक्त पंक्तियों में शांत रस है। यहाँ कबीरदास जी कहते हैं कि हे मानव तू अपने तन अर्थात् शरीर पर इतना गुमान क्यों करता है। यह तो कागज के पुतले के समान है जो पानी की बूँदों से क्षण भर में नष्ट हो सकता है। इसलिए अपने इस नश्वर तन पर गुमान ना कर और तन के प्रति मोह को छोड़कर अपने मन को परमात्मा के चिंतन में लगा।

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