सोरठा
चौपाई
दोहा
बरवै
ऊँ हनु हनु हनु हनुमत हठीले। ऽ ।। ।। ।। ।।।। ।ऽऽ बैरिहिं मारु बज्र की कीले।। ऽ।। ऽ। ।ऽ ऽ ऽऽ उपर्युक्त पंक्तियों में चौपाई छन्द है। भावार्थ : हे अनुमंत, हे दुःखभंजन, हे हठीले, हनुमंत मुझ पर कृपा करो और मेरे शत्रुओं को अपने वज्र से मारकर निस्तेज और निष्प्राण कर दो।
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