बरवै
कवित
रोला
छप्पय
‘अवधी’ का प्राणप्रिय छन्द बरवै है। बरवै बड़ा सुन्दर छन्द है, किन्तु आधुनिक कविता में इसका प्रयोग बहुत कम हो गया है। यह एक मात्रिक छन्द है, जिसमें चार चरण होते हैं। इसके विषम यानी कि पहले और तीसरे चरणों में 12 मात्राएँ और सम यानी दूसरे और और चौथे चरणों में 7 (सात) मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अन्त में जगण यानी लघु, दीर्घ, लघु मात्राएँ होती हैं। रहीम के एक बरवै द्वारा इसे समझा जा सकता है। जैसे - आगि लाग घरु बरिगा, अति भल कीन। साजन हाथ घैलना, भरि-भरि दीन।। अर्थात् आग लग गई, घर जल गया। यह बड़ा अच्छा हुआ, क्योंकि साजन के हाथों में पानी भर-भर के घड़े देने का मौका मिला।
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