यमक
श्लेष
उत्प्रेक्षा
रुपक
‘तीन बेर खाती थी, वे तीन बेर खाती है।’ इस पंक्ति में बेर शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। पहली बार ‘तीन बेर’ दिन में तीन बार खाने की तरफ संकेत कर रहा है तथा दूसरी बार ‘तीन बेर’ का अर्थ है तीन फल। इस प्रकार ‘बेर’ शब्द का दो बार प्रयोग और भिन्नार्थ के कारण उक्त पंक्तियों में यमक अलंकार है। श्लेष - चरण धरत चिंता करत, चितवत चारहूँ ओर। सुबरन को खोजत फिरत, कवि व्यभिचारी, चोर।। इस दोहे की दूसरी पंक्ति में सुबरन का प्रयोग किया गया है, जिसे कवि, व्यभिचारी और चोर तीनों ढूँढ़ रहें हैं इस प्रकार एक ही शब्द ‘सुबरन’ का यहाँ तीन अर्थ है। उत्प्रेक्षा - सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल। बाहर सोहत मनु पिये, दावानल की ज्वाल।। यहाँ पर गुंजन की माला उपमेय में दावानल की ज्वाल उपमान के संभावना होने से उत्प्रेक्षा अलंकार है। रुपक - मन-सागर, मनसा लहरि, बूढ़े-बहे अनेक। इस पंक्ति में ‘मन’ पर ‘सागर’ का और ‘मनसा’ पर ‘लहर’ का आरोप किया गया है।
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