वीर रस
करुण रस
भक्ति रस
रौद्र रस
उपर्युक्त पंक्तियों में भक्ति रस है। यहाँ कृष्ण की भक्ति में लीन रहने वाली मीराबाई कहती हैं - मुझे राम रुपी बड़े धन की प्राप्ति हुई है। मेरे सद्गुरु ने कृपा करके ऐसी अमूल्य वस्तु भेंट की है, उसे मैंने पूरे मनोयोग से अपना लिया है। यह ऐसा धन है। जो मोक्ष का मार्ग दिखाता है, इस नाम को अर्थात् श्रीकृष्ण को पाकर मीरा ने खुशी-खुशी से उनका गुणगान गाया। करुण रस - “हाय रुक गया यहीं संसार, बना सिन्दूर अनल अंगार। वातहत लतिका वह सुकुमार, पड़ी है छिन्नाधार।।”
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